अपने बच्चे की लक्ष्य प्रा ...
24 चौके, 10 छक्के और 131 गेंदों का सामना करते हुए 210 रनों की ऐतिहासिक पारी। किसी वनडे मैच में दोहरा शतक लगाने का कारनामा करके दिखाने वाले चौथे भारतीय बल्लेबाज बन गए हैं क्रिकेटर ईशान किशन। इससे पहले दोहरा शतक लगाने वाले भारतीय क्रिकेटरों में सचिन तेंडुलकर, वीरेंद्र सहवाग और रोहित शर्मा का नाम इस लिस्ट में शामिल है। गौरतलब है कि ईशान किशन ने अपने 10वें वनडे मैच में ही इस तरह का चमत्कारिक प्रदर्शन करके सबको चौंका दिया है। ईशान किशन ने 160.31 के स्ट्राइक रेट से बल्लेबाजी की। हम आपको इस ब्लॉग में ईशान किशन के क्रिकेट करियर की शुरुआत से पहले उनके संघर्ष और माता पिता और परिवार ने किस तरीके से उनका मनोबल बढाया इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं। कहते हैं कि इंसान के करियर की बुनियाद उसके बचपन में ही पड़ जाती है। अगर माता पिता अपने बच्चे की रूचियों और प्रतिभा को देखते हुए लक्ष्य निर्माण में सहयोग करेंगे तो यकीनन आपका बच्चा सफलता के शिखर पर पहुंच सकता है।
18 जुलाई 1998 को बिहार की राजधानी पटना में ईशान किशन का जन्म हुआ हालांकि उनका पैतृक निवास नवादा जिले में है। ईशान के पापा प्रणव कुमार पांडे हैं और वे पेशे से बिल्डर का काम करते हैं। ईशान की माताजी सुमित्रा सिंह है और वो एक हाउस वाइफ हैं। ईशान के बड़े भाई का नाम राज किशन है। ईशान के बड़े भाई राज किशन भी क्रिकेटर रह चुके हैं और घरेलू क्रिकेट टीम अपना योगदान दे चुके हैं। क्रिकेट खेलने की प्रेरणा ईशान को अपने बड़े भाई से ही मिली। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा उनके होम टाउन यानि पटना में ही हुई। बचपन से ही ईशान की अभिरूचि क्रिकेट में खास तौर से रही। ईशान के माता पिता और उनके बड़े भाई ने भी क्रिकेट का बाकायदा प्रशिक्षण दिलवाया। बिहार देश का एक ऐसा राज्य जहां माता पिता बच्चे के पढ़ाई को लेकर किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहते हैं वहां पर अपने बच्चे को पढ़ाई के मुकाबले खेल पर ज्यादा फोकस करने के लिए प्रेरित करना किसी पेरेंट्स के लिए मिसाल है। इस ब्लॉग को जरूर पढ लें:- पापा ने कहा तानों पर नही क्रिकेट की प्रैक्टिस पर ध्यान दो, आज बन गए इंटरनेशनल क्रिकेटर
ईशान इस मामले में सौभाग्यशाली रहे हैं कि उन्हें परिवार की तरफ से हर मोर्चे पर सहयोग मिलता रहा। ईशान के कोच ने उनके पापा को सुझाव दिया कि अगर क्रिकेट में करियर आजमाना है तो इसे पड़ोस के राज्य झारखंड में प्रशिक्षण लेने के लिए भेजो। ईशान उस वक्त महज 12 साल के थे, ईशान के कोच की सलाह मानते हुए माता पिता ने उनको रांची भेजने का फैसला ले लिया।
ईशान का चयन रांची में जिला स्तर पर खेलने के लिए स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की टीम में हुआ। एक कमरे के क्वार्टर में ईशान 4 सीनियर खिलाड़ियों के साथ रहते थे। ईशान को उस दौरान खाना बनाने नहीं आता था तो इसलिए उनके जिम्मे बर्तन साफ करने का काम आया। ईशान के पड़ोसी ने उनके माता पिता को बताया कि कभी कभार ईशान भूखे पेट ही सो जाया करते थे क्योंकि उनके साथ रहने वाले सीनियर खिलाड़ी क्रिकेट खेलने के लिए दूसरे जगहों पर चले जाया करते थे। ईशान के पापा ने जानकारी देते हुए बताया कि इस बात की चर्चा उसने घर में कभी नहीं की, खाना बनाने आता नहीं था तो कभी रात में बिस्किट चिप्स या कुछ नमकीन खाकर सो जाया करता था। इसके बाद ईशान के परिवार ने रांची में फ्लैट किराए पर ले लिया और उनकी देखभाल करने के लिए मां सुचित्रा भी रांची आ गईं। इस ब्लॉग में काफी रोचक बातें बताई गई हैं:- खेलकूद में सक्रिय बच्चे के माता-पिता ये 5 बातें सीख सकते हैं क्रिकेटर सूर्या के पेरेंट्स से
ईशान पूरी तरह से क्रिकेट की प्रैक्टिस में मशगूल रहे इसके लिए उनके परिवार ने हर संभव सहयोग किया। अपने काम काज के सिलसिले में पापा पटना और उसके आसपास के इलाके में रहते हुए बीच बीच में रांची का दौरा किया करते और मां तो पूरी तरह से बेटे की देखभाल करने के लिए रांची में ही शिफ्ट हो गई थीं। महज 15 साल की उम्र में ईशान किशन का चयन झारखंड की रणजी टीम में हुआ। इसके बाद अंडर-19 वर्ल्ड कप साल 2016 में उनको इस टीम का कप्तान भी बनाया गया। ईशान के फैन फॉलोवर्स अब लाखों-करोड़ों में हैं और भारतीय क्रिकेट टीम के उज्जवल भविष्य के तौर पर उनसे काफी उम्मीदें हैं। अपने क्रिकेट करियर के 10वें एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच में उन्होंने इतिहास रच दिया है और इसके बाद साल 2023 के वर्ल्ड कप में भी भारत को उनसे काफी उम्मीदें जग गई है।
ईशान किशन की सफलता की इस कहानी में सबसे बड़ा योगदान उनके मेहनत और लगन को ही जाता है लेकिन ये सबकुछ तभी मुमकिन हो पाया जब ईशान के पेरेंट्स और उनके भाई ने उनका हौसला बढ़ाया। क्रिकेट को अनिश्चितताओं का खेल कहा जाता है और उनके माता पिता ने जिस दौर में ये फैसला लिया होगा कि बच्चे को उनके मर्जी का करियर चयन कर देते हैं ये सबकुछ उतना आसान भी नहीं होता है। बिहार में क्रिकेट की संभावनाएं कम थी इसलिए कोच के निर्देशानुसार ईशान के माता पिता ने बच्चे को रांची भेज दिया और फिर बाद में उनकी मां बच्चे के करियर की खातिर रांची में ही शिफ्ट हो गईं। बच्चे के ऊपर किसी प्रकार का तनाव नही हो और वो पूरी तरह से खेल में रम जाए इसके लिए ईशान के माता पिता ने अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया। ईशान के माता पिता की इस यात्रा से जो प्रेरणा हमें मिलती है कि हमें अपने बच्चे की रूचियों को जानने का प्रयास करना चाहिए। हम बच्चे के ऊपर जबरन किसी बात को नहीं थोपें बल्कि उसकी बातों का जानें और समझने का प्रयास करें। बच्चे की अभिरूचियों का पता चल जाए तो उसके बाद हमें उस क्षेत्र के विशेषज्ञों से भी उचित मार्गदर्शन और सुझाव लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। ईशान के कोच ने सुझाव दिया कि बच्चे को रांची भेज दो, उस समय में ईशान के माता पिता ने अगर ये फैसला नहीं लिया होता तो शायद आज ईशान उस मकाम पर नहीं होते। ईशान के माता पिता से मिलती जुलती कहानी अगर आपके आसपास भी है तो आप हमें अवश्य लिखें, हम आपकी इस कहानी को अन्य पेरेंट्स तक पहुंचाने में आपकी हर संभव मदद करें।
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