ठंड में छोटे—छोटे बच्चों ...
ठंड का महीना शुरू हो चुका है और मौसम में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। दिल्ली सहित देश के अधिकांश स्थानों पर मौसम विभाग ने कोल्ड अलर्ट जारी किया है। वेदर फोरकॉस्ट की मदद से लोगों से बार—बार आग्रह किया जा रहा है कि वे सावधान रहें और खुद को सुरक्षित रखें। इस सर्दी के मौसम में हमको और आपको सतर्क रहने की जरुरत है। खासकर उनलोगों को जिनके घर में छोटे—छोटे बच्चें हैं। बच्चे बीमार ना हो इसके लिए हमें सबसे पहले घर की साफ—सफाई पर ध्यान देने की आवश्यक्ता है। इस बात को लेकर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि घर में नियमित रूप से झाड़ू और पोछा लगाया जाय। आसान भाषा में कहा जाए तो धूल—मिट्टी से बचाया जाए।
घर के अंदर का वातावरण स्वच्छ रहे इसके लिए विशेष तरह के पेड़—पौधों को लगाने की जरूरत है। अगर आपके घर में अधिक स्पेस ना हो या आप किसी बड़े शहर में किसी अपार्टमेंट में रहते हैं तो आप गमले का भी प्रयोग कर सकते हैं। खासकर हमें ऐसे पेड़—पौधे लगाने चाहिए जो अधिक से अधिक ऑक्सीजन दे और घर के माहौल को खुशनुमा बनाए रखे। उदाहरण के लिए— तुलसी, मनी प्लांट, एलोवेरा, अरेका पाम, स्नेक प्लांट, एग्लोनिमा, ड्रेकेना, अंग्रेजी आइवी, जरबेरा डेज़ी, लकी बम्बू, शांति लिली, फाइलोडेनड्रोन, स्पाइडर प्लांट, तलवार फ़रान आदि।
जानकारों की मानें तो बच्चे अधिक और बहुत जल्दी बीमार होते हैं। कारण साफ है कि एक एडल्ट और एक बच्चे की इम्युनिटी पॉवर में काफी अंतर होता है। इसलिए हमें छोटी—छोटी बातों का ध्यान रखाना चाहिए। उदाहरण के लिए बच्चों में अचानक कुछ नया बदलाव तो नहीं दिख रहा या बीमारी होने का लक्षण तो नहीं दिख रहा हैं। आज इस आर्टिकल में हम और आप इसी बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और जानेंगे कि बच्चों को सर्दी के मौसम में होने वाली बीमारियों से कैसे बचाया जाए।
चाइल्ड स्पेश्लिस्ट डॉक्टर संजीव कुमार झा कहते हैं कि इस ठंड के मौसम में बच्चों को कई तरह की बीमारियां हो सकती है, लेकिन इनमें से दो बीमारियां काफी कॉमन है जो हर दस में से नौ बच्चों में दिखने को मिलता है। पहला सर्दी—जुकाम जिसे Common cold कहा जाता है और दूसरा ठंड लगना। इसके इतर भी बहुत सारी बीमारियां हैं जो बच्चों को अपना शिकार बना सकती है। इसमें ब्रोंकियोलाइटिस, गले में खराश, आंतों का संक्रमण, बैक्टीरियल या फंगस इन्फेक्शन आदि।
डॉ संजीव झा कहते हैं कि सबसे पहले सर्दी—जुकाम के बारे में बात करते हैं। यह कहने को तो बेहद साधारण सी बीमारी है, लेकिन यह बच्चों को बहुत जल्द अपना शिकार बनाता है। इसके लक्षण बेहद सिंपल हैं। पैरेंट्स अगर सजग रहे तो इसका घरेलू इलाज भी संभव है।
डॉ संजीव की माने तो जो बच्चे पांच या दस साल से उपर हैं वे अपनी परेशानियां अपने माता—पिता को आसानी से बोलकर बता देते हैं, लेकिन न्यू बॉर्न बेबी या पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए हमें ही अलर्ट रहना होगा। अपाको ध्यान देना चाहिए कि बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए मां का सुरक्षित रहना अतिआवश्यक है। कहने का मतलब यह है कि मां को पानी वाले कामों से बचकर रहना चाहिए। याद रखिए मां अगर कुछ गलत करती है तो इसका असर बच्चे पर भी दिखता है। इसके साथ—साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि बच्चों का नाक बंद तो नहीं हो गया है। लगातार उसे छींक तो नहीं आ रही है। उसके गले में एक अलग तरह का खराश तो नहीं है। माथा दर्द तो नहीं कर रहा। आंखे लाल तो नहीं हो रही है। रह—रहकर आंखों से पानी तो नहीं निकल रहा है। शरीर दर्द से वह परेशान तो नहीं है। अगर इनमें से कोई भी लक्षण आपके बच्चें में है तो तय मानिए कि आपका बच्चा सर्दी—जुकाम की चपेट में आ चुका है।
ठंड में बच्चों को सर्दी—जुकाम से बचाने के लिए बच्चों को गर्म कपड़ा पहनाना चाहिए। नार्मल पानी से नहाने के बदले गर्म पानी से नहाना चाहिए। पीने की पानी को गर्म कर अधिक से अधिक पीना चाहिए। पानी को गर्म कर उसमें नमक डालकर गलगल करना चाहिए। शहद में अदरक का रस मिलाकर पीना चाहिए। अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े को आग में गर्म कर बच्चों को मुंह में रखने के लिए देना चाहिए। तुलसी का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए। बाक्स अर्थात पारिजात के पत्ते का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।
डॉ संजीव कहते हैं कि उपर हमने सर्दी—जुकाम को लेकर विस्तार से बात किया है। अब आपने कभी ध्यान दिया होगा कि जब सर्दी—जुकाम ठीक नहीं होता है तब हम और आप अपने बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास पहुंचते हैं तो डॉक्टर कहते हैं कि इसे तो ठंड लग गया है। इस ठंड नामक बीमारी का लक्षण सर्दी—जुकाम से अलग है। संभव है कि ना तो नाक से पानी निकले और ना छींक आवे। आप गौर करेंगे कि बच्चे दो से अधिक बार शौच करने को जा रहे हैं। पॉटी नॉमल से पतला होता है और कभी—कभी बोमिटिंग भी हो जाती है। तब आप मान कर चलिए कि बच्चे को ठंड लग चुका है। ऐसी परिस्थिति में आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। बच्चा अधिक कमजोर ना हो इसलिए चीनी, नमक और पानी का घोल या ओआरएस देते रहना चाहिए। नवजात बेबी को अधिक से अधिक मां के दूध का सेवन करवाना चाहिए।
डॉ संजीव की मानें तो अगर आपके बच्चे को एक दिन से अधिक बुखार है और उसे सांस लेने में परेशानी हो रही है, बच्चा खुद से खाना नहीं खा पा रहा है और बार—बार बोमिट और पॉटी करने को जा रहा है तो बिना एक मिनट गवाएं हमें अपने फैमली डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अपने मन से ना तो कोई दवा देना चाहिए और ना कोई घरेलू नुस्खा अपनाना चाहिए।
डॉ संजीव कहते हैं कि इस सबसे इतर माता—पिता को निमोनिया से भी सचेत रहना चाहिए। हमें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि हमारे बच्चे को निमोनिया तो नहीं हो गया है। गांव—देहात में आज भी बच्चों को संभालने की जिम्मेवारी दादी—नानी के जिम्मे होती है। वे लोग अनुभव के आधार पर पकड़ लेते हैं कि बच्चा क्यों रो रहा है या उसे किस तरह की परेशानी हो रहा है या कौन सा उपचार करना चाहिए। लेकिन बड़े—बड़े शहरों में बच्चे की सारी जिम्मेवारी मां पर आ जाती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे की पसली अंदर की ओर तो नहीं जा रहा। आसान भाषा में कहा जाए पांजर तो नहीं मार रहा। अगर है तो यह संकेत है कि आपके बच्चे को निमोनिया है। ऐसे में बच्चे को बुखार के साथ—साथ पसीना चलने लगता है और कंपकंपी भी आने लगती है।
अगर आपके बच्चे को निमोनिया हो चुका है तो डॉक्टर से संपर्क कर आपको जल्द से जल्द परामर्श लेना चाहिए। हांलाकि कुछ घरेलू उपचार भी हैं जिसको आप अपना सकते हैं। पहला, सरसों तेल को हल्का गर्म कर लें और हल्दी पाउडर मिलाकर एक लेप बना लें और बच्चे की छाती पर हल्का—हल्का लगा दें। दूसरा, गर्म भाप लेने से भी निमोनिया से बच्चों को लाभ पहुंचता है।
ठंड का मौसम भले आ चुका है और बच्चों को अधिकांश गर्म कपड़ों में लपेटकर या ओढ़ाकर रखना चाहिए। लेकिन अगर बच्चा छोटा है तो उसे धूप में थोड़ी देर के लिए जरूर रखना चाहिए। तेल से बारबार मालिश की जानी चाहिए। बच्चा अगर बड़ा है तो नियमित एक्सरसाइज करवाना चाहिए। भोजन हर हाल में गर्म करके ही खाना चाहिए। इस बात को लेकर विशेष ध्यान देना चाहिए कि जो हम खा रहे है वह पौष्टिक है या नहीं। बसिया खाने से तो बिलकुल परहेज करना चाहिए।
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