क्या हैं मलेरिया(Malaria) ...
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मलेरिया (Malaria) सबसे ज्यादा प्रचलित संक्रामक बीमारियों में से एक है। आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष दुनियाभर में 5 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से प्रभावित होते हैं। अगर हम अपने देश की बात करें तो मलेरिया साल के किसी भी मौसम में आपको अपनी चपेट में ले सकता है लेकिन बारिश के मौसम में ज्यादा सतर्कता बरतने की आवश्यकता होती है। दरअसल बारिश के दौरान मच्छरों का प्रकोप और उनकी प्रजनन क्षमता में वृद्धि हो जाती है और इसलिए इस समय में मलेरिया के संक्रमण के फैलने की दर सबसे ज्यादा हो जाती है। इस ब्लॉग में हम आपको मलेरिया क्या होता है, मलेरिया के लक्षण (maleria symptoms) व मलेरिया से बचाव के उपायों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया में मलेरिया के कुल मामलों में 77 फीसदी भारत में ही है यानि कि मलेरिया के खतरे को कम करके नहीं आंका जा सकता है। अगर हम बात अपने देश की करें तो राजस्थान, कर्नाटक, गोवा, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ औडिशा और नॉर्थ इस्ट के राज्यों में सबसे ज्यादा मामले हैं। आयुर्वेद के मुताबिक मलेरिया को विषम ज्वर कहा गया है और इसमें वात, पित्त और कफ तीनों दोष पैदा हो सकते हैं। आयुर्वेद प्रैक्टिसनर म्रृणाल जामदार के मुताबिक 5 प्रकार के मलेरिया (types of maleria) या विषम ज्वर हो सकते हैं।
सन्तत- आयुर्वेद प्रैक्टिसनर म्रृणाल जामदार बताती हैं कि सन्तन बुखार 7 से 10 दिन या 12 दिन तक लगातार बना रह सकते हैं।
सतत-आयुर्वेद प्रैक्टिसनर म्रृणाल जामदार के अनुसार सतत बुखार दिन रात में दो बार चढ़ने वाला बुखार है। ये दिन में 2 बार या रात में 2 बार या दिन में एक बार आता है।
अन्येद्युष्क- ये बुखार यह दिन-रात में एक बार आता है।
तृतीयक- यह एक दिन छोड़कर हर तीसरे दिन आने वाला बुखार है।
चातुर्थिक- यह रात में आने वाला बुखार है, इसे रात्रिज्वर भी कहते हैं।
मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज को सर्दी और सिरदर्द की समस्या के साथ ही बार-बार बुखार आ सकता है। सही ढ़ंग से अगर इस बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो मरीज के कोमा में चले जाने की परिस्थिति भी आ सकती है और लापरवाही बरतने पर मरीज की मृत्यु तक हो सकती है।
मलेरिया प्लाजमोडियम के प्रोटोजोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। एक्सपर्ट्स की माने तो कुल 4 प्रकार के प्लाजमोडियम परजीवी इंसानों को प्रभावित कर पाते हैं और इन चारों प्लाजमोडियम में सबसे ज्यादा खतरनाक माने जाने वाला फैल्सिपैरम और विवैक्स हैं।
हालांकि प्लाजमोडियम ओवेल और मलेरिये नाम के परजीवी भी मलेरिया के संक्रमण को फैला सकते हैं।
मलेरिया परजीवी के वाहक के रूप में मादा एनोफिलेज मच्छर है और एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसके काटने से ही मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं।
मलेरिया की चपेट में आने के बाद शरीर में खून की कमी, सांस फूलना, सर्दी, जुकाम, उल्टी और बुखार जैसे लक्षण महसूस किए जा सकते हैं।
1. मादा मच्छर एनॉफिलीज को मलेरिया बीमारी का सबसे प्रमुख कारण माना गया है। इसको प्लास्मोडियम के नाम से भी जाना जाता है। अगर हम बात अपने देश की करें तो सबसे ज्यादा मलेरिया के संक्रमण प्लास्मोडियम वीवैक्स और प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के कारण ही होता है। इस ब्लॉग को जरूर ही पढ़ लें :- डेंगू के मच्छरों की कैसे करें पहचान?
2. मलेरिया बीमारी को संक्रामक माना जाता है। अगर एनॉफिलीज मच्छर किसी मलेरिया संक्रमित मरीज को काटने के बाद किसी दूसरे इंसान को काट ले तो मलेरिया के जीवाणु उसके शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं।
3. अगर बिना जांच पड़ताल किए मलेरिया संक्रमित व्यक्ति के शरीर का खून दूसरे व्यक्ति में आदान-प्रदान हो जाए तो इसके चलते भी मलेरिया हो सकते हैं।
4. एक और अहम जानकारी कि अगर मलेरिया परजीवी रोगी के लिवर में प्रवेश करता है तो वह कम से कम एक वर्ष या कुछ वर्ष तक रोगी के लिवर में रह सकता है।
आपको जानकर हैरानी होगी की मलेरिया बीमारी हजारों वर्षों से इंसान को प्रभावित करता चला आ रहा है। सबसे पहले चीन में 2700 ईसा पूर्व मलेरिया बीमारी का जिक्र किया गया है। अब आप ये भी सोच रहे होंगे कि आखिर मलेरिया शब्द आया कहां से है? इटालियन भाषा के शब्द माला एरिया से इसकी उत्पत्ति हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ खराब हवा बताया जाता है। मलेरिया को दलदली बुखार के नाम से भी जाना जाता रहा है क्योंकि दलदली क्षेत्र जहां नमी की प्रचुरता के चलते मच्छर पर्याप्त मात्रा में पाए जाते थे। साल 1880 मे फ्रांसीसी डॉक्टर चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवरेन ने अल्जीरिया में काम करने के दौरान पहली बार लाल रक्त कोशिका के अंदर परजीवी को नोटिस किया। साल 1907 में उनके इस खोज के चलते मेडिकल क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद भी मलेरिया को लेकर रिसर्च होते चले गए, क्यूबा के एक डॉक्टर कार्लोस फिनले ने दावा किया कि मच्छर इस बीमारी को एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य तक फैलाते हैं। इंग्लैंड के सर रोनाल्ड रॉस ने भारत के सिकंदराबाद में काम करते हुए मच्छरों की विशेष जातियों से पक्षियों को कटवा कर उन मच्छरों की लार ग्रंथियों से परजीवी को अलग करके दिखाया। मलेरिया के पहले उपचार के तौर पर सिनकोना वृक्ष की छाल सामने आया जिसमें कुनैन पाया जाता है।
ये ब्लॉग आपके लिए अत्यंत उपयोगी है:- कैसे करें तैयार घर में मॉस्क्वीटो रेपेलेंट (मच्छर भगाने की दवाई)
यूं तो मलेरिया बीमारी के अनेक लक्षण हो सकते हैं लेकिन जिन प्रमुख लक्षणों को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए उनके बारे में हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं।
बुखार के साथ ठंड लगना- अगर कोई व्यक्ति मलेरिया से संक्रमित हो गया है तो उसको अचानक से कंपकंपी वाली ठंड महसूस हो सकते हैं। ठंड लगने के साथ ही बुखार भी आ सकता है। बुखार का प्रभाव 4 से 6 घंटे तक रह सकता है इसके बाद पसीना निकलने के साथ बुखार उतर जाता है।
रूक-रुककर बुखार आना- मलेरिया बीमारी के संक्रमण का एक प्रकार पी फैल्सीपैरम है। इसमें ठंड के साथ बुखार आता है। आमतौर पर 1 से 2 दिन तक बुखार आता है। मरीज ये मान लेता है कि बुखार चला गया है तो खतरा टल गया लेकिन 2-3 दिन के बाद फिर से बुखार आपको अपनी चपेट में ले सकता है। इसलिए बुखार को कभी नजरंदाज नहीं करें और अपने डॉक्टर से जरूर संपर्क करें। इस ब्लॉग के साथ ही आपको ये भी पढ़ लेना चाहिए:- क्या हैं बच्चों में डेंगू बुखार के लक्षण, कारण और उपचार?
सिरदर्द- जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि मलेरिया के पी फैल्सीपैरम संक्रमण के दौरान बुखार और कंपकंपी वाली ठंड लग सकती है लेकिन इसके अलावा मरीज को तेज सरदर्द भी हो सकता है। मलेरिया के दौरान लीवर के आकार में वृद्धि, खून में ग्लूकोज की कमी के चलते किडनी भी प्रभावित हो सकते हैं।
बेहोशी- कई बार इलाज के दौरान लापरवाही के चलते मरीज को गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं। गर्भवती महिलाओं, बच्चे और नौजवानों को तो ज्यादा सावधानियां बरतने की जरूरत होती है। मरीज बेहोशी की हालत में भी जा सकता है। जिन जगहों पर मलेरिया नामकी बीमारी महामारी का रूप ले लेती हैं वहां पर मृत्यु दर में भी वृद्धि हो जाते हैं।
शरीर में ऐंठन- मलेरिया का असर दिमाग तक चला जाता है और इसके चलते दिमाग में खून की आपूर्ति में कमी हो सकती है। इसके चलते शरीर के कई अंगों जैसे कि हाथ पांव में ऐंठन महसूस हो सकते हैं। दिमागी मलेरिया के चलते छोटे बच्चे का मानसिक विकास भी रूक जाता है।
शरीर की त्वचा धीरे-धीरे ठंडी पड़ सकती है
मलेरिया के दौरान कई मरीजों में उल्टी या जी मचलने की समस्याएं भी देखने को मिल सकते हैं।
कुछ मरीजों का आंख भी लाल हो सकता है और इसके अलावा आंखों में जलन की समस्याएं भी हो सकते हैं।
मलेरिया के प्रभाव के चलते मरीज को थकान और अत्यधिक कमजोरी महसूस हो सकते हैं।
मलेरिया के चलते छोटे बच्चों में डायरिया की समस्या भी हो सकते हैं। इस तरह के लक्षण महसूस होते ही आपको तत्काल अपने डॉक्टर से परामर्श लेनी चाहिए
मलेरिया से बचाव के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है लेकिन सबसे अधिक आपको इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि अपने आसपास में मच्छरों को बिल्कुल ना पनपने दें।
मलेरिया के मच्छर ज्यादातर देर शाम या रात के समय में काटते हैं इसलिए इस दौरान घरों में ही रहें
मलेरिया से बचने के लिए उस तरह के कपड़ों का प्रयोग करें जो आपके शरीर के अधिकांश भाग को ढ़क सके जैसे कि फुल बाजू की शर्ट और पैंट पहने रहें।
ध्यान रहे कि अपने घर के आस पास बारिश के पानी या गंदे पानी का जलजमाव नहीं होने दें। घर के आसपास के नाले को समय समय पर सफाई करते रहें।
यदि आपके परिवार के किसी सदस्य के शरीर में बुखार सरदर्द जैसे लक्षण नजर आएं तो फौरन अपने नजदीकी अस्पताल या डॉक्टर से संपर्क करें।
मलेरिया बीमारी की संभावनाओं को कम करने के लिए अपने डॉक्टर की परामर्श के मुताबिक एंटीमलेरियल दवा का सेवन कर सकते हैं लेकिन ये बहुत जरूरी है कि डॉक्टर की सलाह लेने के बाद ही दवा प्रयोग में लाएं।
मलेरिया का निदान(Diagnosis of Malaria in Hindi) मरीज के शरीर से खून का सैंपल लेने के बाद ब्लड स्मियर तैयार किया जाता है। ब्लड स्मियर में मलेरिया परजीवी अगर नहीं पाया गया है तो डॉक्टर फिर से टेस्ट करा सकते हैं।
मलेरिया के इलाज (maleria treatment) के लिए आपके डॉक्टर दवा दे सकते हैं। रोगी के शरीर और बीमारी के स्तर को जांच करने के बाद डॉक्टर एंटी मलेरियल ड्रग्स, बुखार कम करने वाली दवाएं दे सकते हैं। मलेरिया में फॉल्सीपैरम संक्रमण से ग्रसित मरीज की हालत गंभीर होने की परिस्थिति में डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक आईसीयू में भी भर्ती कराए जा सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को मलेरिया होने पर अपने डॉक्टर की सलाह के मुताबिक क्लोरोक्वीन नाम की दवा दी जा सकती है। ध्यान रहे, किसी प्रकार की दवा का इस्तेमाल अपने डॉक्टर की परामर्श के बाद ही करें।
मलेरिया के दूसरे टीके R21 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंजूरी दे दी है। बताया जा रहा है कि अगले साल यानि 2024 से ये वैक्सीन बाजार में उपलब्ध हो सकते हैं। अनुमान के मुताबिक वैक्सीन के एक डोज की कीमत 166 रुपए से 332 रुपए के बीच हो सकती है। BBC के मुताबिक, इस वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने बनाया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को मलेरिया है तो उसे इस वैक्सीन के 4 डोज लेने होंगे। WHO के डायरेक्टर जनरल घेब्येयियस ने कहा- RTS,S/AS01 और R21 में ज्यादा फर्क नहीं है। हम ये नहीं कह सकते कि दोनों में से कौन सी ज्यादा असरदार होगी। दोनों ही इफेक्टिव हैं। आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में दुनियाभर में मलेरिया से 4.09 लाख मौतें हुई थीं, इनमें 67% यानी 2.74 वे बच्चे थे, जिनकी उम्र 5 साल से कम थी। भारत में 2019 में मलेरिया के 3 लाख 38 हजार 494 केस आए थे और 77 लोगों की मौत हुई थी। सबसे ज्यादा 384 मौतें 2015 में हुई थीं।
मलेरिया नाम की बीमारी के घातक परिणाम को देखते हुए इसके उपचार में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। कुछ घरेलू नुस्खे हैं जो मलेरिया के प्रभाव को कम करने में मददगार साबित हो सकते हैं।
खट्टे फल- मलेरिया के प्रभाव को कम करने के लिए खट्टे फलों का सेवन किया जा सकता है। अंगूर, संतरा, नींबू जैसे फल को इम्यूनिटी बढ़ाने वालामाना जाता है और अपने गुणों के चलते जैसे कि विटामिन सी बुखार को कंट्रोल करता है। इसके अलावा खट्टे फलों में अन्य प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जो आपको स्वस्थ बनाने में सहयोग करता है।
अदरक के गुणों से आप भली भांति परिचित होंगे। अदरक को पानी में उबालकर सेवन करते रहें। दरअसल अदरक में एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं और ये दर्द-उल्टी को रोकने में मददगार हो सकते हैं।
हल्दी को एंटी ऑक्सीडेंट माना जाता है और ये शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। इसके अलावा हल्दी दर्द के प्रभाव को भी कम करता है। मलेरिया होने की स्थिति में आप प्रतिदिन एक गिलास हल्दी वाले दूध का सेवन कर सकते हैं। हल्दी अपने गुणों के चलते मलेरिया के परजीवी को मारने में में मददगार साबित हो सकता है।
दालचीनी- गर्म पानी में दालचीनी और कालीमिर्च का मिश्रण बनाकर इसमें शहद मिलाकर सेवन कर सकते हैं। मलेरिया के उपचार में दालचीनी फायदेमंद साबित हो सकता है।
मेथी दाना को प्रमुख औषधि माना गया है। मेथीदाना को रात भर पानी में भिगोकर रख सकते हैं और इसको सुबह उठकर खाली पेट पी सकते हैं। मेथी दाना रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और मलेरिया के परजीवी को कमजोर कर देता है ताकि आप जल्दी से स्वस्थ हो सकें।
आप चाय में तुलसी के पत्ते, काली मिर्च, दालचीनी और अदरक मिलाकर पी सकते हैं।
अपने आहार में फलों को शामिल करें जैसे कि सेब, अमरूद, पपीता, चीकू एवं अन्य
तेल-मसालेदार भोजन से परहेज करें और दाल-चावल, खिचड़ी, दलिया, साबुदाना जैसे खाद्य सामग्रियों को आहार में ले सकते हैं।
इसके अलावा अंकुरित बीज, अनाज और प्रचुर मात्रा में हरी सब्जियों का सेवन कर सकते हैं।
ज्यादा से ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें
आम, अनार, लीची और अनानास जैसे फलों का अभी सेवन ना करें
दही, शिकंजी, गाजर मूली जैसे फूड आइटम्स अभी ना खाएं।
मरीज के आसपास साफ-सफाई का खास ख्याल रखें। ये बात ध्यान दें कि जल जमाव आसपास में ना हो
मरीज को कभी भी कंपकपाहट शुरु हो सकती है इसलिए गर्म कपड़े पहना कर रखें। इस दौरान कूलर एसी का प्रयोग ना ही करें तो अच्छा
नॉर्मल पानी पीएं और ठंडे पानी से परहेज रखें
नहाने के समय में भी सामान्य पानी का इस्तेमाल करें
सोने समय में बेड में मच्छरदानी का इस्तेमाल जरूर करें।
मलेरिया से राहत पाने के लिए 2-3 नीम के पत्ते और काली मिर्च के 4 दाने लेकर एक साथ पीस लें। इस पाउडर को थोड़े से पानी में मिलाकर उबाल लें और सामान्य होने पर इसको छान कर पी लें
मलेरिया के मरीज को अचानक से तेज बुखार और ठंड लग सकते हैं। उपरोक्त बताए गए लक्षण जैसे ही नजर आएं तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। आपके डॉक्टर ब्लड सैंपल का टेस्ट करवाने के बाद मलेरिया की पुष्टि हो जाने पर उपचार शुरू कर देंगे। ध्यान रहे कि अगर समय रहते सावधानी और उपचार शुरू कर दिए गए हैं तो मलेरिया के मरीज शीघ्र स्वस्थ हो सकते हैं।
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