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बच्चों में गिलियान-बैरे सिंड्रोम: कारण, लक्षण और उपचार के बारे में जानें

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Roshan Maithil

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3 hours ago

बच्चों में गिलियान-बैरे सिंड्रोम: कारण, लक्षण और उपचार के बारे में जानें
चिकित्सा

गिलियन-बैरे सिंड्रोम अर्थात (GBS) नामक बीमार जो इन दिनों एक बार फिर से बच्चों को अपना शिकार बना रही है। यहीं कारण है कि सतर्कता के लिए माता—पिता सहित घर के बड़े लोग इस बीमारी के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। कोई इंटरनेट की मदद ले कर अपना ज्ञान बढ़ा रहे हैं तो कोई अपने फैमली डॉक्टर से संपर्क कर सलाह ले रहे हैं। आज इसलिए हम भी अपने इस आलेख में गिलियन-बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी के बारे में विस्तार से बात करने आए और, इस दौरान हम यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि इससे कैसे बचा जा सकता है। इसके होने का कारण कया है। इसके लक्षण कौन—कौन से है और इसका उपचार कैसे संभव है। तो आइए शुरू करते हैं आज की स्टोरी    

सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि गिलियन-बैरे सिंड्रोम अर्थात (GBS) नामक बीमारी होता क्या है। यह कैसे किसी बच्चे को अपना शिकार बनाती है। तो सबसे पहले यह जान लेते हैं कि गिलियन-बैरे सिंड्रोम अर्थात (GBS) एक ऐसी बीमारी है जो बच्चों को अपना शिकार बनाती है। यह बच्चों के शरीर में प्रवेश कर नसों को प्रभावित करती है। इसके कारण कभी—कभी बच्चों को छाती, पैर सहित शरीर के अन्य अंगों में शर्ट टर्म पैरालाइसिस का भी अनुभव होता है। इस कारण बच्चों को सांस लेने में भी परेशानी होती है। बच्चों को पहले कमजोरी का अनुभव होता है और बाद में बॉडी पेन की समस्या से दो चार होना पड़ता है। अगर सही समय पर बच्चों का ईलाज किया जाए तो यह पूरी तरह से ठीक भी हो जाता है। 

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    क्यों होती है यह बीमारी

    जानकारों की मानें तो यह कहना काफी कठिन है कि कि आखिरकारी बच्च्चों में यह बीमारी क्यों आती है, लेकिन यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर कमजोर होने के बाद अपने आप स्वत: शरीर के अंदर जन्म लेती है। इसे आप वायरल इंफेक्शन भी मान सकते हैं जो किसी तरह की ऑपरेशन करने के उपरांत या चोट लगने के बाद उत्पन्न होती है। जिन किसी को यह बीमारी अपना शिकार बनाती है उनमें दो लक्षण काफी कॉमन है। हर पांच में से चार लोगों को सांस लेने में पहले परेशानी होती है और बार—बार पायखाना अर्थात दस्त की समस्या दिखने लगती है। 

    यह बीमारी किसी भी बच्चे को अपना शिकार बना सकती है। हम यह नहीं कह सकते हैं कि फलाने बच्चे को यह बीमारी हो सकती है दूसरे को नहीं होगी। हर बीमार बच्चे में लक्षण भी अलग—अलग तरीके से दिखने को मिलता है। किसी बच्चे को पैर की उंगलियों में दर्द और कमजोरी का अनुभव होता है तो किसी को पैर दर्द से काभी परेशान होना होता है। हाथ या बांह दर्द की समस्यां भी हो सकती है। जब आप चलने के लिए खड़े होते हैं या लंबी यात्रा करते हैं तो दर्द का अनुभव होने लगता है। 

    आप अगर अपने बच्चों की डेली रूटीन को ध्यानपूर्वक देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि बच्चे में बदलाव दिख रहा है। एक तरह से कहा जाए तो उसमें आपको एक अलग तरीके का चिड़चिड़ापन दिखने लग जाएगा। पहले वह जिस बात पर नहीं रिएक्ट करता था अब उसपर भी गलत रिएक्ट करने लग जा रहा है। कभी—कभी खाना खाने या निगलने में उसे परेशानी का अनुभव तो नहीं हो रहा है। सांस लेने में उसे परेशानी तो नहीं हो रही है ना। हो सकता है उसे देखने में परेशानी हो रही हो और चेहरा पहले से कमजोर दिखने लगा हो।

    ठीक होने में कितना समय लगता है

    हमने यह तो जान लिया कि इस बीमारी के लक्षण क्या हैं। अब सवाल उठता है कि जो बच्चे इस बीमारी से बीमार होते हैं वह ठीक हो सकते हैं या नहीं। अगर ठीक होते हैं तो कितना समय लगता है। तो चलिए यह भी जान लेते हैं। कोई बच्चा कितना जल्दी ठीक होगा यह सबकुछ उसकी क्षमता अर्थात इम्यूनिटी पॉवर जिसे रोग प्रतिरोधक क्षमता कहा जाता है उसपर निर्भर करता है। कोई बच्चा एक से दो महीने में भी ठीक हो जाता है तो किसी को एक से दो साल तक इलाज करवाते रहना पड़ सकता है।

    बच्चों में लक्षण दिखने पर क्या करना चाहिए

    उपर हमने आपको इस बीमारी से संबंधित कुछ लक्षण आपको बताएं हैं। अगर आपको अपने बच्चे या किसी अन्य के बच्चों में किसी भी तरह का लक्षण दिखे या संदेह हो तो हमें डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि विगत कुछ दिनों में क्या कुछ परिवर्तन आपको देखने को मिल रहा है। 

    डॉक्टर खून और पेशाब टेस्ट के अतिरिक्त जरूरत पड़ने पर कुछ और जांच करने को कहेंगे और रिपोर्ट आने के बाद आवश्यकता अनुसार इलाज शुरू करवाएंगे। किसी भी बच्चे का इलाज उसकी उम्र और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखकर अलग—अलग तरीके से किया जाता है।

    जांच के उपरांत डॉक्टर द्वारा इलाज के दौरान जो सलाह हमें दिया जाए उसका पालन हर हाल में हो इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। बच्चे को बेड रेस्ट कहा गया है तो किसी तरह की लापरवाही नहीं करनी चाहिए। बच्चा अगर स्कूल में पढ़ रहा है तो स्कूल प्रशासन से बात कर स्टडी फ्राम होम की व्यवस्था करवाने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए। समय—समय पर उसे होमवर्क मिलता रहे इसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए।  

    याद रखिए कि सावाधानी बरतने से और डॉक्टर की सलाह से जीबीएस नामक बीमारी का खात्मा हो जाता है। अगर सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। इलाज आरम्भ होने के बाद आप देखेंगे कि आपका बच्चा धीरे—धीरे ठीक हो रहे है।

    अब तक हमने आपको यह बताया है कि सही समय पर इलाज शुरू होने से सब कुछ ठीक होना संभव है। अब यह भी जान लीजिए की लापरवाही करने के बाद अगर किसी बच्चे को देर से डॉक्टर के पास ले जाया जाता है तो संभव है कि डॉक्टर उसे अपनी देख—रेख में एडमिट कर इलाज शुरू करें। कभी—कभी तो आईसीयू में बच्चों को एडमिट भी करवाना पड़ जाता है। जो लोग अंत तक डॉक्टर के पास नहीं पहुंच पाते हैं उनके बच्चे को लगातार सांस लेने में परेशानी होते रहती हैं और अंत में यह जान जोखिम बन जाता है। 

    घरेलू उपचार भी महत्वूपर्ण है

    हमने आपको यह तो बताया कि डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए लेकिन यह भी याद रखिए तो इस दौरान खानपान पर विशेष ध्यान देना होता है। शारिरिक क्षमता को बढ़ाने के लिए और शरिर में शक्ति बनी रहे इस लिए हमें उन तमाम घरेलू तरीके को अपनाना चाहिए जो हम अपनाते हैं। मसलन सही समय पर भोजन और नाश्ता करना। फल और ग्रीन वेजिटबल का सेवन करना। जूस पीना। योगा और एक्सरसाइज करना आदि। 

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