जानिए कि किन उपायों से सौ ...
आरुषि की उम्र अभी 6 साल की है, अपनी मां को खोने के बाद वह भावनात्मक उतार -चढ़ाव से गुजर रही है। किसी भी छोटी बात पर रोना और दुखी रहना मानो उसकी आदत में शामिल हो गया है। उसके आस-पास के लोगों का कहना है कि आरुषि को एक मां की जरूरत है और इसलिए उसके पापा को उसके लिए नई मां लानी ही चाहिए। आरुषि के पापा इससे कुछ हद तक राजी हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनकी बेटी सौतेली मां के नाम से ही दुखी हो जाए, सौतेली मां को अपनाना तो दूर की बात है।
यह सच नहीं है कि हर सौतेली मां या सौतेला पिता खराब ही हो और सौतेले बच्चे से प्यार न करे। इस सोच के पीछे हिन्दी फिल्मों का फितूर भी है। यह जरूर है कि पहले से बनी इसी फैमिली में अपनी जगह बनाना चुनौतीपूर्ण जरूर है और बच्चों के लिए तो प्रिया खासतौर पर परेशान कर देने वाला है। किसी ने व्यक्ति के परिवार में प्रवेश करने से उनके अंदर गुस्सा भर सकता है जिसे कम करना सबसे ज्यादा और पहले जरूरी है। ऐसे में सौतेली मां सौतेली पिता की भूमिका बहुत कष्टकारी और महत्वपूर्ण हो जाती है। लेकिन समय धैर्य और कोशिश के बाद सौतेले बच्चे के साथ भावनात्मक रिश्ते को कायम किया जा सकता है। आज ब्लॉग में जानते हैं कि किस तरह कुछ उपायों को आजमाकर सौतेली मां या सौतेले पिता बच्चे के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम किया जा सकता है।
बच्चे को करने दें नेतृत्व
यह जरूरी है कि सौतेले बच्चे की शांति और उसकी भावनाओं की कद्र की जाए। बच्चे को अपनी सौतेली मां या सौतेले पिता को जानने और समझने में समय लग सकता है। इसौतेली मां या सौतेले पिता का धैर्य रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। इस समय बच्चा नाजुक स्थिति से गुजर रहा होता है और उसे कहीं न कहीं यह उम्मीद रहती है कि उसकी अपनी मां या पिता वापस लौट आएंगे। इसलिए हड़बड़ी में गड़बड़ी करने की बजाए धैर्य से काम लेना सही है।
अकेले का समय
एक बार जब सौतेली मां या सौतेली पिता बच्चे को समझ लेते हैं, तो अगला कदम अकेले में समय बिताने का है। इसके लिए कहीं घूमने भी जाया जा सकता है या ऐसी एक्टिविटी का चुनाव किया जा सकता है, जहां दोनों को जबरन बात करने की जरूरत ना पड़े। ऐसे में यह ध्यान रखना जरूरी है कि आउटिंग लोकल और बजट फ्रेंडली हो ताकि बच्चे की उम्मीद बहुत ज्यादा ना बढ़ जाए।
उसकी रुचि में मदद
यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही ज्यादा मुश्किल। लेकिन यह एक बेहतरीन तरीका है, जिससे सौतेली मां या सौतेले पिता बच्चे के साथ अपने जुड़ाव को मजबूत कर सकते हैं।बच्चे के होमवर्क में मदद की जा सकती है, यदि स्कूल में वह किसी गतिविधि में हिस्सा ले रहा है, तो उसे देखकर बच्चे को बाद में कंपलीमेंट्स दिए जा सकते हैं। यदि आप चाहें तो उसके शौक को पूरा करने में उसकी मदद कर सकते हैं।
अपनी जगह बनाएं
एक सौतेली मां या सौतेले पिता की तरह यह आपका फर्ज बनता है कि आप बच्चे को या महसूस कराएं कि आप उसकी मां या उसके पिता की जगह नहीं लेना चाहते हैं। यदि बच्चे के मन में ऐसी बात आ गई, तो इससे उसकी भावनात्मक अवस्था पर विपरीत असर पड़ता है। उसे गुस्सा आ सकता है और गुस्सा सबके लिए खतरनाक है। इसलिए बेहतर तो यह होगा कि आप बच्चे से स्पष्ट तौर पर बात करें और उसे बताएं कि आप कभी भी उसके जन्मजात माता या पिता की जगह नहीं लेना चाहते हैं बल्कि अपनी अलग जगह बनाना चाहते हैं।
पार्टनर के साथ योजना
आप एक नए परिवार में शामिल हुए हैं, तो जरूरी है कि आप अपने पार्टनर को बताएं कि आप बच्चे के साथ किस तरह का रिश्ता बनाना चाहते हैं। यह जरूरी है कि आपका पार्टनर अपने बच्चे की जरूरतों को पूरा करने में अपने एक कदम पीछे करे ताकि आप प्राकृतिक तौर पर बच्चे के साथ जुड़ पाएं। उदाहरण के लिए उसके होमवर्क में मदद करना, स्कूल लेने चले जाना।
एक सौतेली मां या सौतेले पिता के लिए यह प्राकृतिक है कि उन्हें बच्चे के साथ तुरंत जुड़ाव महसूस नहीं होगा। बच्च एक एलिए भी यह कष्ट भरा दौर है, जिसमें उसे अपने घर और परिवार में नए व्यक्ति को जगह देनी है। ऐसे में बेहतर तो यह होगा कि दोस्त बनकर इस रिश्ते को आगे बढ़ाने की शुरुआत की जाए।
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