आपका बच्चा इंट्रोवर्ट है ...
Only For Pro
Reviewed by expert panel
मेरे पड़ोस में रहने वाले दिलीप के 2 बच्चे हैं। पहला बच्चा सोसाइटी में काफी लोकप्रिय हो चुका है और किसी से भी उसको घुलने मिलने में समय नहीं लगता है लेकिन वहीं दिलीप का दूसरा बच्चा किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करता है और मम्मी पापा के साथ ही रहना पसंद करता है। दिलीप इस बात को लेकर चिंतित हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि उनके दोनों बच्चों का स्वभाव एक दूसरे से अलग क्यों है? इस ब्लॉग में हम आपको बच्चे के इंट्रोवर्ट या एक्सट्रोवर्ट होने के कारणों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं और इसके साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे कि इंट्रोवर्ट या एक्सट्रोवर्ट की पहचान कैसे करें?
सबसे पहले तो इस बात को अच्छे से समझ लें कि हर व्यक्ति के स्वभाव में समानता नहीं होते हैं। कुछ लोग होते हैं जिन्हें नए दोस्त बनाने में वक्त नहीं लगता है और वे खुलकर बात करने में यकीन रखते हैं। लेकिन आपने नोटिस किया होगा कि कुछ लोगों का स्वभाव इससे विपरित होता है और वे बहुत जल्द किसी से घुल मिल नहीं पाते हैं। कम बोलने में यकीन रखते हैं, समूह में नहीं बल्कि अकेले समय बिताना ज्यादा पसंद करते हैं। इस तरह के स्वभाव वाले लोगों को अंतर्मुखी स्वभाव का माना जाता है।
आपके बच्चे का व्यक्तित्व उसके बातचीत करने के तौर तरीके, स्कूल में उसके व्यवहार, दोस्तों के साथ बातचीत करने का सलीका इन बातों पर भी निर्भर कर सकता है। पेरेंट्स होने के नाते आपको इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए कि आपके बच्चे को किसी से संवाद करने में किसी प्रकार की घबराहट या शर्मिंदगी तो नहीं हो रही है। क्या वो आसानी से किसी के साथ सामान्य तरीके से बातचीत कर पाता है? दरअसल ये छोटी मोटी बातें बच्चे के संपूर्ण विकास में अपना अहम योगदान देती है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आपके बच्चे के अंदर आत्मविश्वास का बढ़ना।
अपने बच्चे के व्यक्तित्व को समझने के लिए आपको उसके व्यवहार और मूड पर ध्यान देना चाहिए। बच्चा किन बातों पर खुश होता है और किस तरह की परिस्थिति में खुद को असहज महसूस करता है ये जरूर गौर करें।
दूसरों से बातचीत करने के दौरान आपका बच्चा किस तरह का व्यहार अपनाता है? क्या वह खुश रहता है और खूब बातूनी है? क्या बिना किसी हिचकिचाहट से वो दूसरों के साथ घुल मिल जाता है, क्या दिन भर की अपनी गतिविधियों के दौरान वो ऊर्जावान बना रहता है? अपनी उम्र के बच्चों के साथ बातचीत करने में कैसा है, क्या वो खुश रहता है, नए लोगों से मिलने के दौरान उसका एक्शन क्या होता है, स्कूल की गतिविधियों में भाग लेने के लिए क्या उत्साहित रहता है? इस तरह के कुछ सवालों का जवाब आपको अपने बच्चे के इंट्रोवर्ट या एक्सट्रोवर्ट होने के बारे में निर्णय लेने में मदद कर सकता है।
अगर ऊपर बताए गए अधिकांश प्रश्नों का जवाब हां में है तो इसका मतलब कि आपका बच्चा बहिर्मुखी स्वभाव का है। अब आपको चाहिए कि अपने बच्चे को ज्यादा से ज्यादा एक्टिविटीज में शामिल करें।
अगर ज्यादातर सवालों के जवाब ना में हैं तो हो सकता है कि आपका बच्चा इंट्रोवर्ट यानि अंंतर्मुखी स्वभाव का है लेकिन इस बात को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप अपने बच्चे को उन जगहों पर भेजें जहां वो खुद को सहज महसूस करता हो, इसके अलावा उन्हें नई गतिविधियों में शामिल होने के लिए आप प्रेरित करते रहें।
ध्यान रहे कि एक ही परिवेश और एक ही परिवार के दो बच्चों के स्वभाव में भी परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।
इस सवाल का जवाब अमेरिकर लेखिका सूसेन केन ने अपनी किताब “क्वाएट: दी पॉवर ऑफ इंट्रोवर्ट इन अ वर्ल्ड दैट कैन नॉट स्टॉप टॉकिंग”में बहुत अच्छे से दिया है।
आमतौर पर होता ये है कि अगर हमें पता चल जाता है कि कोई बच्चा अंतर्मुखी स्वभाव का है तो हम दूसरे बच्चे की तुलना में उसका ज्यादा ध्यान रखना शुरू कर देते हैं। कुछ लोग तो ये भी मानकर चलने लगते हैं कि अंतर्मुखी स्वभाव वाले अजीब और अलग किस्म के होते हैं। अमेरिकी राइटर सूसेन केन ने अपनी किताब में लिखा है कि अंतर्मुखी और शर्मिले किस्म के स्वभाव के बीच के अंतर को समझने की जरूत है। अंतर्मुखी स्वभाव वाले बच्चे शर्मीले हो सकते हैं लेकिन सभी वैसे ही हों ये जरूरी नहीं है।
सुसेन केन ने कहा है कि जो लोग अंतर्मुखी स्वभाव के होते हैं उनके अंदर कुछ अद्वितीय शक्ति भी हो सकते हैं, आपको जानकर हैरानी होगी कि महात्मा गांधी, आइंस्टीन, एम वॉटसन जैसे महापुरुष अंतर्मुखी स्वभाव के माने जाते रहे हैं।
आप ये मानकर चले कि हर बच्चे का स्वभाव अलग हो सकता है, कुछ बच्चे आसानी से दोस्त बना लेतें हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो दोस्त बनाने के लिए कुछ लंबा समय ले सकते हैं।
मनोविज्ञान शास्त्र के मुताबिक नए परिवेश, नई परिस्थिति व नए लोगों के साथ आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेने वाले लोगों को बहिर्मुखी कहते हैं वहीं दूसरी तरफ बोलचाल की भाषा में खुद को रिजर्व रखने वाले लोगों को अंतर्मुखी कहा जाता है।
इस ब्लॉग को जरूर पढ़ लें:- क्या आपके बच्चे को स्कूल में या बाहर 'बुलिंग' ( Bullying) किया जा रहा? जानिए बचाव के उपाय
बच्चे की बातों को ध्यान से सुने- हर बच्चे का स्वभाव अलग हो सकता है इसलिए क्लास रूप में कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो शिक्षक के प्रश्नों का जवाब देने के लिए फौरन हाथ उठा लेते हैं लेकिन वहीं कुछ बच्चे ऐसे भी हो सकते हैं जिनको जवाब तो मालूम होता है लेकिन वे शर्म या संकोचवश हाथ खड़ा नहीं करते हैं। आमतौर पर शिक्षक उन बच्चों से ज्यादा संवाद करते हैं और जो अक्सर हाथ खड़ा करते हैं लेकिन जो बच्चे अंतर्मुखी होते हैं वे चुपचाप देखते रहते हैं। इन परिस्थितियों में स्कूल में शिक्षकों को चाहिए कि वे सभी बच्चे पर उचित समय दें और उनकी बातों को गौर से सुनें।
अगर बच्चे कुछ नया करने का प्रयास कर रहे हैं तो उनकी प्रशंसा करें- ध्यान रहे कि आप अपने आसपास जितना सकारात्मक माहौल बनाएंगे बच्चे के ऊपर भी उतना अच्छा प्रभाव पड़ेगा। अगर बच्चा कुछ नया करने के लिए सकारात्मक प्रय़ास कर रहा है तो उसकी तारीफ करें, इससे बच्चे को कुछ नया करने की प्रेरणा मिल सकेगी।
‘इंट्रोवर्ट्स बच्चे मदद मांगने में संकोच कर सकते हैं- कई बार होता है कि पढ़ाई के दौरान किसी सवाल को अगर बच्चे हल नहीं कर पाते हैं तो वे मदद मांगने में संकोच करते रहते हैं। ऐसे में बच्चे के साथ संवाद स्थापित करके उनकी समस्या के बारे में समय निकाल कर पूछते रहने से उनके अंदर का शर्म और संकोच खत्म हो सकता है।ट
समय समय पर बच्चे को प्रोत्साहित करें- अगर बच्चा अंतर्मुखी स्वभाव का है तो सबके सामने उसे लज्जित ना करें। इस तरह की भाषा का प्रयोग ना करें कि ये तो किसी के सामने बोल ही नहीं पाता है बल्कि आप इस तरह की परिस्थिति को और अच्छे तरीके से हैंडल करने का प्रयास करें। आप पुचकार कर या दुलार कर बच्चे को समझाने का प्रयास करें। आपका बच्चा अगर किसी काम को अच्छे से कर रहा है तो सबके सामने उसको प्रोत्साहित करें।
बर्हिमुखी बच्चे अपने आसपास मौजूद लोगों से ऊर्जा और विचार ग्रहण करते हैं जबकि अंर्तमुखी बच्चे अपने अंदर मौजूद विचारों, भाव और सुझावों से ऊर्जा और विचार ग्रहण करते हैं।
बर्हिमुखी बच्चे एक बड़े समूह या कक्षा के अन्य बच्चों के साथ बातचीत कर, दूसरों के विचार सुनकर और आसपास के वातावरण से सीखते हैं। अंर्तमुखी ऐसे नहीं होते, माना जाता है कि ऐसे बच्चे किसी अनजान समूह में बात करने में हिचकिचाते हैं।
ये अपने जान पहचान के लोगों के साथ ही बात करना पसंद करते हैं। ऐसे बच्चे दूसरों को सिर्फ देखकर ही सीख लेते हैं। अंर्तमुखी कक्षा में ज्यादातर शांत रहते हैं और किसी भी बातचीत में दखल नहीं देते हैं।
बच्चों को दो चीजों में अंतर करना सिखाएं
अक्सर अंर्तमुखी बच्चे पहचान नहीं पाते कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। ऐसे में उन्हें अंतर करना सिखाना चाहिए कि हर काम में दो तरह की परिस्थिति होती हैं।
पहली - मैं नहीं करना चाहती/चाहता
दूसरी- ये करना मुझे ठीक नहीं लग रहा
जब बच्चा इन दोनों बातों में फर्क करना सीख जाएगा तब वह खुद फैसले ले पाएगा।
2. उन्हें जताइए कि आपको पता है कि आपका बच्चा किन क्षेत्रों में पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना सर्वोत्तम देगा
बर्हिमुखी बच्चों में ये खासियत होती है कि वो बिना डरे काम करते हैं चाहे उन्हें पता हो कि इसके उनके साथ मौजूद लोग उन पर भरोसा नहीं कर रहे हैं लेकिन अंर्तमुखी बच्चे इससे अलग होते हैं। उन्हें भरोसा दिलाना पड़ता है कि आपको पता है कि वो आत्मविश्वास से भरे हैं और अपने काम को ठीक तरह से करेंगे। ऐसी भावना अंर्तमुखी बच्चों के लिए ‘’एंजाइम’’ का काम करती है जो उनके विचारों को गति प्रदान करती है।
3. मुश्किल की वजह का पता लगाइए
जब बच्चा कहता है कि उसे आपके साथ बाजार नहीं जाना, तो ‘’नहीं तुम चल रहे हो’’ ऐसा कहकर अपना फरमान मत सुनाइए, उससे पूछिए कि वो किस वजह से चलना नहीं चाहता
5. बच्चों को उनके गुणों के साथ अपनाएं
अंर्तमुखी बच्चों की बहिर्मुखी बच्चों से तुलना नहीं की जा सकती। इसे बहुत सरल उदाहरण से समझा जा सकता है। अंर्तमुखी बच्चों के दिमाग की खिड़कियां अंदर की ओर खुली होती हैं जबकि बर्हिमुखी बच्चों के दिमाग की खिड़कियां बाहर की ओर। परिस्थितियों के अनुसार दोनों की प्रतिक्रिया अलग होती है। बर्हिमुखी किसी भी हालात में तत्काल प्रतिक्रिया देते हैं लेकिन अंर्तमुखी ऐसे नहीं होते। इसलिए दोनों तरह के बच्चों को उनके व्यक्तित्व के साथ अपनाएं।
Be the first to support
Be the first to share
Comment (0)