क्या हैं आटिज्म(Autism) में चिकित्सा से परे एक मां के प्रयास ?

एक ऑटिस्टिक बच्चे (Autistic Child) की मां के रूप में मेरा निरंतर प्रयास नए कौशल विकसित करने और मौजूदा चीजों पर काम करने का रहा है। बच्चे में ऑटिज्म के स्पेक्ट्रम पर दूसरी मांओं की तरह मेरी भी यात्रा असंख्य चुनौतियों से भरी हुई है। जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ी, मैंने अपनी बेटी में विशिष्ट कौशल विकसित करने के लिए अपने तरीके तैयार किए।
ऑटिज्म निदान और चुनौतियां/ Autism Symptoms, Challenges in Hindi
मेरी बेटी प्रिया (बदला हुआ नाम) में आटिज्म(Autism) की पहचान तब हुई जब वह 5 साल की थी। उस समय उसमें कुछ ऐसे लक्षण दिखे, जो उसकी उम्र के हिसाब से अनुपयुक्त थे।
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चम्मच से खेलने का मोह
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कुर्सियों व अन्य सामान को एक कतार में सजाकर रखना
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अक्सर खुद से बात करना
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किताबें पढ़ने में असमर्थता
ऑटिज्म के साथ ही प्रिया में अति सक्रियता (Hyper Activity) भी थी, जिसके परिणामस्वरूप उसमें कम समयावधि तक अटेंशन करने की दिक्कत थी जिसे एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर) के नाम से भी जाना जाता है। यह अन्य चुनौतियों को भी जन्म देता है जैसे –
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कम बैठने की सहिष्णुता (टॉलरेंस) या धैर्य (एक स्थान पर बैठने में असमर्थता) और लगातार कूदते रहना
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सामाजिक कुशलता का अभाव
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सामाजिक वार्तालाप जिसमें अपने विचार व्यक्त करने की सार्थकता और समझ दोनों का उपयोग किया जाता है।
हमने चिकित्सकीय मदद लेना शुरू किया, जिसमें पेशेवर व स्पीच थेरेपी शामिल था। मैंने पाया कि चिकित्सा के अलावा मुझे एक पैरेंट्स के रूप में अपने प्रयास भी करने होंगे। किसी स्कूल में छात्र के तौर पर प्रिया की शिक्षा बाधित थी। इसलिए उसकी अतिसक्रियता पर अंकुश लगाना और उसके ध्यान की अवधि पर काम करना मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई।
अतिसक्रियता (Hyper Activity) को कैसे कण्ट्रोल करें?/ Ways to Control Child's Hyperactivity in Hindi
बच्चे की अतिसक्रियता को रोकने में सहायता करने वाले 2 प्रमुख कारक इस प्रकार हैं। यहाँ जानें...
- आहार में चीनी की मात्रा कम करना (Reduce Quantity of Sugar) - मैंने कई ऑनलाइन शोध किए और उनमें हाइपर एक्टिविटी के बारे में ज्यादा से ज्यादा पढ़ा। इस दौरान मुझे पता चला कि आहार में चीनी की मात्रा कम करने से हाइपर एक्टिविटी कम हो जाती है। इसके बाद मैंने उसके आहार से चीनी की मात्रा काफी कम कर दी।
- व्यायाम(Regular Excercise) – मैंने दिन में दो बार शारीरिक व्यायाम करना उसकी रोज की दिनचर्या बनाई। इससे उसकी हाइपर एक्टिविटी (अतिसक्रियता) को कम करने में काफी मदद मिली।
यह परिवर्तन क्रमिक थे, लेकिन जैसे-जैसे उसकी अतिसक्रियता (हाइपर एक्टिविटी) कम हुई, उसने गलियारे में टहलने के लिए क्लास के बीच में उठना बंद कर दिया, साथ ही उसे स्कूल की छुट्टी का इंतजार करने की आदत भी पड़ गई।
ध्यान केंद्रित कराने की चुनौती को कैसे किया पार?/Ways to Recover from Autism Spectrum Disorder in Hindi
अब जबकि पूर्व के मुद्दों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई थी, ऐसे में मैं जानती थी कि अब प्रिया की एकाग्रता और ध्यान पर काम करने का समय है। मैंने अपने काम से आराम लिया और इसी को मजबूत करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी। निम्ननिखित गतिविधियों ने उसमें एकाग्रता स्तर बढ़ाने और ध्यान केंद्रीत करने में मदद की। यहाँ जानें...
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पहेलियों के साथ काम करना(Play Puzzle) – मैंने प्रिया के अंदर आरे पजल्स (पहेलियों) के साथ खेलने की आदत डाली। इससे उसके ध्यान को केंद्रीत करने व लंबी अवधि तक बैठने में सक्षम बनाने में मदद मिली।
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सुडोकू पहेलियों को सुलझाना (Sudoku) – मैंने पाया कि प्रिया को मैथ्स पसंद है, ऐसे में मैंने उसे सुडोकू के बारे में बताया और उसका हल करने को दिया। जल्द ही वह उन पहेलियों को सुलझाने के लिए खुशी से लंबे समय तक बैठने लगी थी।
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मोतियों का उपयोग – मैंने कुछ रंगीन मोतियां व उन्हें पिरोने के लिए धागा खरीदा और इसे प्रिया को दे दिया। इससे न केवल उसमें बैठने की सहनशीलता का निर्माण हुआ, बल्कि उसे गिनती और रंगों के बारे में भी पता चल गया।
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ड्रॉइंग व रंग की गतिविधियां (Drawing)– शुरू में मैंने घर, पेड़, पहाड़ जैसी बुनियादी चीजें पेज पर बनाईं और प्रिया को इनमें रंग भरने को दिया। धीरे-धीरे वह खुद भी इन सभी चित्रों को बनाने लगी और उसमें रंग भरने लगी। वह इसे करने में काफी आनंदित होती थी।
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काल्पनिक आचरण – मैंने धीरे-धीरे उसे विक्रेता से सब्जियां, फल व अन्य चीजें खरीदने वाले आचरण में शामिल किया। इसने उसके अंदर बैठने की क्षमता का निर्माण करने के साथ ही विभिन्न प्रकार के फलों, सब्जियों, रंगों, आकृतियों व संख्याओं की अवधारना से भी रूबरू कराया।
इन सभी गतिविधियों ने प्रिया को ठीक होने व काम पर ध्यान केंद्रित करने में मदद की, जिसके परिणामस्वरूप घर के साथ-साथ स्कूल में उसकी वैचारिक समझ और बुनियादी सीखने की क्षमता भी मजबूत हुई। यही नहीं इसने उसमें शैक्षणिक सीखने की नींव भी रखी। इन सभी गतिविधियों में चिकित्सा की तरह ही एक पैरेंट्स की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि एक मां अपने बच्चे से पूरी तरह जुड़ी होती है और अपना अधिकतर समय उसी के साथ बिताती है, ऐसे में वह उसकी अलग-अलग जरूरतों को समझने व उसी के अनुसार उन्हें संभालने की बेहतर स्थिति में होती है। हर माता-पिता विभिन्न मुद्दों पर काम करने के लिए अपने खुद के तरीकों को तैयार कर सकते हैं, लेकिन इन पर आवश्यक प्रगति सुनिश्चित करने के लिए इन गतिविधियों पर दीर्घकालिक स्थिरता सबसे ज्यादा जरूरी है।
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