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किन बातों का ख्याल रखें बच्चे के अन्नप्राशन संस्कार की प्लानिंग करते समय?

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Deepak Pratihast

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किन बातों का ख्याल रखें बच्चे के अन्नप्राशन संस्कार की प्लानिंग करते समय?

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हिंदू धर्म में 16 संस्कार माने गए हैं। इनमें सभी का अपना खास महत्व है। इसमें सप्तम संस्कार है अन्नप्राशन संस्कार। यह खान-पान संबंधी दोषों को दूर करने के लिए जातक के जन्म के 6-7 महीने बाद किया जाता है। अन्नप्राशन शिशु को अन्न खिलाने की शुरुआत को कहा जाता है। दरअसल 6 महीने तक बच्चा मां के दूध पर ही निर्भर रहता है, लेकिन छठे महीने के बाद अन्नप्राशन संस्कार के बाद उसे अन्न ग्रहण कराया जाता है, इसलिए इस संस्कार का बहुत अधिक महत्व है। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्या है यह संस्कार, इसका महत्व क्या है और इसके लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।


अन्नप्राशन संस्कार का महत्व / Importance of Annaprashan in Hindi

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    अन्नाशनान्मातृगर्भे मलाशाद्यपि शुद्धयति इसका अर्थ है कि माता के गर्भ में रहते हुए जातक में मलिन भोजन के जो दोष आते हैं उनके निदान व शिशु के सुपोषण हेतु शुद्ध भोजन करवाया जाना चाहिये। छह मास तक माता का दूध ही शिशु के लिये सबसे बेहतर भोजन होता है इसके पश्चात उसे अन्न ग्रहण करवाना चाहिये इसलिये अन्नप्राशन संस्कार((First Feeding Ceremony) ) का बहुत अधिक महत्व है। शास्त्रों में भी अन्न को ही जीवन का प्राण बताया गया है। अन्न से ही मन का निर्माण बताया जाता है इसलिये अन्न का जीवन में बहुत अधिक महत्व है। कहा भी गया है कि “आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि”।

    कब करना चाहिए अन्नप्राशन संस्कार / Tips for Making Annaprashan Ceremony Memorable in Hindi 

    अन्नप्राशन संस्कार जन्म के बाद छठे या सातवें महीने में किया जाता है। दरअसल 6 महीने तक बच्चे को मां का दूध ही देने चाहिए। बच्चा 7वें में महीने में जाकर हल्का भोजन पचाने (baby's first solid feeding ceremony)में सक्षम हो जाता है, इसके अलावा इसी समय से बच्चे के दांत भी निकलने लगते हैं। ऐसे में यह संस्कार सांतवें महीने में करना चाहिए। संस्कार के लिए शुभ नक्षत्र तिथि निकलवानी चाहिए। वैसे कई जगह लड़के का अन्नप्राशन सम माह यानी जन्म के छठे या आठवें माह में किया जाता है, जबकि लड़कियों का अन्नप्राशन संस्कार विषम माह यानी जन्म के पांचवें या सातवें माह में किया जाता है। [अधिक पढ़ें - क्या हैं 1 साल के बच्चे को मीठा खिलाने के फायदे और नुकसान?]

    मंदिर या घर कहीं भी कर सकते हैं अन्नप्राशन संस्कार

    इस संस्कार को लेकर कई लोग सिर्फ इसलिए कंफ्यूज रहते हैं कि आखिर इसे कहां करना चाहिए। आयोजन को लेकर हर जगह अलग-अलग मान्यता है। कोई इसे मंदिर में मनाता है तो कोई घर में ही मनाता है। विद्वानों कहते हैं कि इसे घर, मंदिर या कम्यूनिटी सेंटर कहीं भी मनाया जा सकता है। बस पैरेंट्स इसकी विधि का ठीक से पालन करें।


    ऐसे किया जाता है बच्चे का अन्नप्राशन संस्कार

    इस संस्कार के दौरान शिशु को भात, दही, शहद और घी आदि को मिलाकर खिलाया जाता है। संस्कार के लिए पंडित से शुभमुहूर्त देखकर उसमें देवताओं की पूजा करें। देवताओं की पूजा के बाद चांदी के चम्मच से खीर आदि का प्रसाद शिशु को मंत्रोच्चारण के साथ चटाएं।

    अन्नप्राशन संस्कार के दौरान ध्यान रखी जाने वाली बातें

    बच्चे के अन्नप्राशन संस्कार के दौरान नीचे दी गई बातों को अवश्य ध्यान रखें। 

    • अन्नप्राशन संस्कार के दौरान ज्यादा भीड़ न जुटाएं। हो सकता है अधिक लोगों को देखकर आपका बच्चा परेशान हो जाए।
       
    • इस कार्यक्रम के दौरान बच्चे को भारी-भरकम ड्रेस पहनाने से बचें। इससे बच्चा असहज महसूस करने लगता है। इसके अलावा उसके शरीर पर रेशेज की समस्या भी हो सकती है। इसलिए बच्चे को हल्के व ढीले कपड़े पहनाएं। 
       
    • इस संस्कार के दौरान कई जगह कई लोग बच्चे को खाना खिलाते हैं। इस मौके पर आपको थोड़ा अलर्ट होने की जरूरत है। दरअसल छोटी उम्र में बच्चा बहुत ज्यादा भोजन पचा नहीं सकता, इसलिए उसे ज्यादा खिलाने से बचें।

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