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स्टे एड होम डैड बनकर पत्नी को वकील बनने में मदद की

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Prasoon Pankaj

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2 years ago

स्टे एड होम डैड बनकर  पत्नी को वकील बनने में मदद की
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अरे तुम तो स्टे एट होम डैड बन गए हो, कैसे कर लेते हो तुम ये सब कुछ। बच्चे के साथ अधिक समय बिताना मां का काम होता है डैड का नहीं…इस तरह की कई बातें तीर्थ के पापा को सुनने पड़ते थे। साल 2013 में शादी के बाद दोनों पती पत्नी अपनी जिंदगी में काफी खुश हैं। पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर तो पत्नी बैंकिंग सेक्टर में जॉब करती थी। इसके साथ ही पत्नी इशिता कानून की पढ़ाई भी कर रही थी। कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के समय में पत्नी प्रेग्नेंट हुई। दोनों के जीवन में बड़ा बदलाव तब आया जब तीर्थ का जन्म हुआ। तीर्थ के जन्म के साथ ही दोनों की जिम्मेदारियां बढ़ गई। तीर्थ की मां इशिता और पापा ने प्रोफेशनल लाइफ और पेरेंटिंग की यात्रा के बीच कैसे तारतम्य स्थापित किया ये एक रोचक और मजेदार कहानी है। वास्तविक जीवन की ये केस स्टडी उन पेरेंट्स के लिए भी प्रेरणादायक है जो करियर और पेरेंटिंग के बीच में कैसे संतुलन स्थापित करें इस बात को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। 

स्टे एड होम डैड (Stay At Home Dad) बनने की चुनौतियों को कैसे पार किया?

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    तीर्थ की मां इशिता को अपना पढ़ाई जारी रखने के लिए हमेशा पति ने प्रेरित किया। तीर्थ के पापा वर्क फ्रॉम होम मोड में कार्यरत थे और उन्होंने तय किया कि वो घर के कामकाज खास तौर से बच्चे की देखभाल के साथ ही अपना जॉब जारी रखेंगे। इशिता की पढ़ाई जब पूरी हुई तो उनको काम करने के लिए तीर्थ के पापा का हर स्तर पर सपोर्ट रहा। शुरुआती दौर में इशिता हिचकिचा रही थी कि वो बाहर काम करने जाएगी और इस दौरान तीर्थ की सारी जिम्मेदारियां पति के कंधों पर ही होगी। तीर्थ के पापा ने आत्मविश्वास के संग अपनी पत्नी को कहा कि वो निश्चिंत होकर काम करे और तीर्थ की देखभाल करने में वो अपना बेस्ट देंगे।  

    तीर्थ के पापा ने बच्चे का डायपर चेंज करना भी सीख लिया, इतना ही नहीं तीर्थ को समय पर वैक्सीन ले जाने से लेकर उसकी हर छोटी मोटी जरूरतों का पूरा ध्यान रखा। Humans of Bombay के साथ बातचीत के दौरान तीर्थ के पापा कहते हैं कि मैं पूरी तरह से पितृत्व को अपनाना चाहता था और अपने बच्चे की देखभाल अच्छे से करना चाहता था ताकि मेरी पत्नी अपने लक्ष्य और ख्बाब को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित कर सके। वहीं दूसरी तरफ इशिता को भी अपने पति की चिंता थी। इशिता ने कहा भी की 'मैं इस्तीफा दे दूंगी और तीर्थ की देखभाल के लिए पढ़ाई छोड़ दूंगी। इशिता के पति का कहना है कि मुझे पता था कि इशिता का करियर उसके लिए कितना मायने रखता है- मैंने इतने सालों में उसका काम इतनी मेहनत से देखा है और इसलिए, मैंने उसे आश्वस्त किया, ' तुम इतनी दूर आ गए हो, अब मत छोड़ो!' मैं चाहता था कि वह अपनी पूर्णकालिक नौकरी पर ध्यान केंद्रित करे ताकि मैं अपने बच्चे के पालन-पोषण पर ध्यान केंद्रित कर सकूं।

    तीर्थ के पापा अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहते हैं कि बच्चे की परवरिश के माध्यम से एक व्यक्ति के रूप में कहीं अधिक विकास पाया। Humans of Bombay से बातचीत में उन्होंने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में इशिता ने अपना सपना पूरा किया- उसने अपनी परीक्षा पास की और आज एक वकील बन गई है। इशिता की जीत मेरी है और मुझे पता है कि उसे मुझ पर उतना ही गर्व है कि मैं हमेशा से माता-पिता बनने के लिए तैयार हूं। लोग अक्सर कहते हैं, 'यू आर स्टे एट होम डैड!' और 'बच्चे के साथ अधिक समय बिताना माँ का काम है,' लेकिन इस तरह की टिप्पणियों से मेरे अहंकार को चोट नहीं पहुंचती है। इशिता और मैंने एक-दूसरे को सपोर्ट करने के लिए शादी की, ना कि एक-दूसरे को बक्सों में बांधे रखने के लिए। हम वही करते हैं जो हमारे परिवार के लिए सबसे अच्छा है, हमारी भलाई के लिए। हमारी शादी साझेदारी पर आधारित है, स्वामित्व पर नहीं।"

    अगर आपके आसपास या आपके कोई परिचित पेरेंटिंग से संबंधित इस तरह के अनुभवों को हमारे साथ साझा करना चाहते हैं तो आप हमें helpdeskune.com पर ईमेल करिए। हम आपकी कहानी और आपके अनुभवों को अन्य पेरेंट्स के सामने अवश्य लाएंगे। 

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