कैसे करें बच्चों की सही प ...
कहते हैं हमारे पूर्वज पहले बंदर थे और हजारो वर्षो के विकास के साथ मनुष्य बंदर से मानव बना हैं। शारीरिक बदलाव के साथ हमारे दिमाग भी पहले से तेज होता गया हैं। यह विकास क्रम आज भी चला आ रहा हैं। हम जब छोटी उम्र के थे उसकी तुलना में आज के छोटे बच्चो का दिमाग ज्यादा तेज है और वह नयी बातों को हमसे जल्दी सिख लेते हैं। अगर सही पोषण, शिक्षा और अनुशासन दिया जाए तो छोटे उम्र में भी बच्चे कमाल कर देते हैं। यही नहीं, बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते हम भी उनसे कुछ नयी चीजे सिख सकते हैं।
कुछ समय पहले की बात हैं। बच्चों की छुट्टिया शुरू थी, मैंने सोचा बच्चे के लिए Video game लेकर जाता हूँ। दुकानदार से मैंने पूछा, ' भाई ! इसे चालू कैसे करते हैं ? ' दुकानदार ने जवाब दिया, " आपके घर के आस-पास कोई छोटा बच्चा होंगा तो उसे बुला देना वह इसे ठीक से लगा देंगा। " दुकानदार का जवाब सुनकर मैं आश्चर्य चकित हो गया। दुकानदार का अनुमान सही निकला। हमारे पास के 6 वर्ष के राजू ने Video game सही से लगा दिया। सचमे ! आज कल के बच्चे हमसे ज्यादा होशियार हैं।
पहले कम उम्र में बच्चों की पढाई के पास इतना ध्यान नहीं दिया जाता था। अब बच्चों की कम आयु की क्षमता को पहचानकर पढाई के साथ-साथ गाना, डांस, संगीत, कराटे, दिमागी खेल जैसे कई चीजे भी सिखाई जाती हैं। पढाई का बोझ होने के बावजूद भी बच्चे इन्हें आसानी से सिख लेते हैं। कई बार ऐसा भी होता है की बच्चे हमारी कोई बात नहीं मानते हैं। ऐसे वक्त ज्यादातर माँ-बाप अपने बच्चो को डांट कर समझाने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने से बच्चे मान तो लेते है पर उनके मन पर विपरीत परिणाम होकर कभी-कभी मानसिक डर भी बैठ जाता हैं। जहाँ तक हो सके हमें बच्चों को पीटने या डरा धमकाने की जगह एक अच्छे दोस्त की तरह शांति से समझाना चाहीए। जैसे बच्चों को सही पोषण देना जरुरी है उसी तरह बच्चों को सही परवरिश देना भी हमारी जिम्मेदारी हैं।
बच्चो को अगर कोई काम कराने के लिए उनमे अगर आत्मविश्वास जगा दिया जाए और एक जिम्मेदारी का एहसास दिया जाये तो बच्चे किसी भी कार्य को प्रेम से और सफलतापूर्वक कर लेते हैं। बच्चे जिन काल्पनिक पात्रो को असली समझते है, हम उन्ही काल्पनिक पात्रों की मदद लेकर उन्हें अच्छी शिक्षा दे सकते है। जैसे अगर मेरा बेटा दूध नहीं पिता है तो उसे Mighty Raju तो दूध पीकर शक्तिशाली बनता है या Pop eye तो पालक खाकर मजबूत बनता है कहकर पौष्टिक आहार देते हैं। बच्चे हमसे ही सीखते है इसलिए हमें अपने बच्चों के सामने अपना बर्ताव भी हमेशा ठीक रखना चाहिए। बच्चों के साथ अगर हम भी उनकी सोच की तरह चीजो को समझना शुरू करे तो उन्हें आसानी से समझाया जा सकता हैं।
बच्चो से हम कई अच्छी बातें भी सिख सकते हैं। बच्चो में न तो उंच-नीच का भेदभाव, न जात-पात का भेदभाव, न ही कोई छल-कपट होता हैं। बच्चों में अगर कभी झगडा हो भी जाता है तो चंद पलों में सब भूल कर वे तुरंत फिरसे दोस्त बन जाते हैं। दुनिया में हर इंसान अगर अपने अंदर के बच्चे को हमेशा जिन्दा रखे तो दुनिया की आधी से ज्यादा तकलीफे तो ऐसी ही समाप्त हो जाएँगी।
आज अपने बच्चों को हस्ते खेलते देख बहोत ख़ुशी होती है। उनके साथ बिताया हर ख़ुशी का पल अनमोल है। उन्होंने मुझे अपना बचपन फिरसे जीने का मौका दिया हैं। उन्हें खेलते देख एक शायर की दो पक्तियां याद आती हैं,
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो !
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे !!
यह लेख Parentune के साथ डॉ पारितोष त्रिवेदी जी ने साझा किया हैं l पेरेंटिंग और सेहत से जुडी ऐसी ही अन्य उपयोगी जानकारी सरल हिंदी भाषा में पढने के लिए आप डॉ पारितोष त्रिवेदी जी की वेबसाइट www.nirogikaya.com पर अवश्य करे !
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