15 अगस्त, 15 महिला स्वतंत्रता सेनानी : जरा याद इन्हें भी कर लें !

15 अगस्त को हर साल हम लोग स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। देश के प्रधानमंत्री इस दिन लालकिले पर झंडा फहराते हैं और समस्त देशवासी इस दिन आजादी की लड़ाई में संघर्ष करने वाले समस्त स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आजादी की इस लड़ाई में बहुत सारे वैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी अपनी जान की बाजी लगा दी थी जिनका नाम तक हमें ज्ञात नहीं हैं। क्या आप जानते हैं कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए संघर्ष के इस लंबे दौर में महिलाओं ने भी पुरुषों के साथ हर कदम पर भरपूर साथ दिया था। तो चलिए आजादी की इस वर्षगांठ पर हम आपको उन 15 महिला सेनानियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने देश की खातिर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।
क्या आप इन 15 महिला सेनानियों के संघर्ष के किस्से को जानते हैं? / 15 Female Freedom Fighters Of India In Hindi
हमारे देश को आजाद कराने में अनगिनत लोगों ने कुर्बानियां दी। इनमें पुरुषों के साथ साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। आजादी की वर्षगांठ मनाने के साथ-साथ हम सबको 15 अगस्त के दिन इन स्वतंत्रता सेनानियों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए।
- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई-अपने देश में महिला सशक्तिकरण की सबसे बड़ी मिसाल हैं रानी लक्ष्मीबाई। बचपन में इनका नाम मणिकर्णिका था और ये शुरू से ही युद्द कला में निपुण थीं। इनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुई। इन्होंने ब्रिटिश सरकार के कानून का पालन करने से इन्कार कर दिया। अपनी मौत से पहले तक लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के साथ डटकर मुकाबला करती रहीं। 22 साल की उम्र में अंग्रेजों के साथ जंग में शहीद हो गईं।
- सुचेता कृपलानी- उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री रह चुकीं सुचेता कृपलानी प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी रह चुकी हैं। आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते इनको कई बार जेल जाना पड़ा था। गांधी जी के विचारों से प्रभावित सुचेता कृपलानी का योगदान अविस्मरणीय है।
- अरुणा आसफ अली- देश की राजधानी दिल्ली में अरुणा आसफ अली मार्ग बेहद लोकप्रिय है लेकिन ये बहुत कम लोगों को मालूम है कि इस रास्ते का नाम जिस शख्सियत के सम्मान में रखा गया वो कौन थीं। साल 1958 में दिल्ली की पहली मेयर चुनी जाने वाली अरुणा आसफ अली स्वतंत्रता सेनानी थीं। इन्होंने भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में इन्होंने तिरंगा फहराया था।
- श्रीमती भीकाजी रूस्तम कामा- इन्होंने विदेशों में घूम-घूमकर भारत की आजादी के पक्ष में माहौल बनाया। साल 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में इन्होंने भारत का तिरंगा राष्ट्रध्वज फहरा दिया था हालांकि उस दौर में तिरंगा का स्वरूप वो नहीं था जो आज के समय में है। श्रीमती भीकाजी कामा के द्वारा पेरिस से प्रकाशित वंदेमातरम पत्र विदेश में निवास कर रहे भारतीयों के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ था।
- दुर्गा भाभी-क्रांतिकारियों की प्रमुख सहयोगी के रूप में दुर्गा भाभी को जाना जाता है। साल 1938 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह ने इन्हीं दुर्गा भाभी के साथ वेश बदलकर ट्रेन से यात्रा की थी। दुर्गा भाभी क्रांतिकारी भगवती चरम बोहरा की पत्नी थीं।
- बेगम हजरत महलबेगम हजरत महल अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी थीं। 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया। इस दौरान इन्होंने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया।
- गुलाब कौर-फिलीपींस की राजधानी मनीला में गदर पार्टी जो कि अंग्रेजों के शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए सिख-पंजाबी प्रवासियों द्वारा स्थापित एक संगठन था। इस संस्था में गुलाब कौर शामिल हुईं। गुलाब कौर गदर पार्टी के अखबार और पत्र में पत्रकार के तौर पर काम करती रहीं और लोगों के बीच में स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित साहित्य बांटकर उनको आजादी की लड़ाई में सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती रहीं। इनको लाहौर में दो साल की सजा भी सुनाई गई थी।
- रानी चेनम्मा- कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं रानी चेनम्मा। अंग्रेजों की हड़प नीति ( डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स) के खिलाफ इन्होंने अंग्रेजों से जंग लड़ी। इस संघर्ष के दौरान रानी चेनम्मा को कैद कर लिया गया। जेल में ही रानी चेनम्मा का निधन हो गया।
- रानी गाइदिन्ल्यू- रानी गिडालू के नाम से मशहूर गाइदिन्ल्यू नागा आध्यात्मिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय थीं। इन्होंने अग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया। साल 1982 में इनको पद्म भूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। इनकी वीरता को देखते हुए इनको नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से भी जाना जाता है।
- प्रीतिलता वादेदारत्र 21 साल की उम्र में प्रीतिलता ने देश की खातिर जान दे दी थी। 1932 में चटगांव के नजदीक यूरोपियन क्लब में हुए हमले के पीछे प्रीतिलता की मुख्य भूमिका रही थी। शुरुआत से ही इनका झुकाव क्रांतिकारी विचारों की तरफ था। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से अंग्रेजों ने कोलकाता यूनिवर्सिटी में इनकी डिग्री पर रोक लगा दिया। इस बात से जुड़ी एक रोचक जानकारी ये है कि साल 2012 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन की पहल पर तकरीबन 80 साल बाद इनकी डिग्री को रिलीज की गई।
- सरोजनी नायडू- सविनय अवज्ञा आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली सरोजनी नायडू को महात्मा गांधी के साथ जेल भी भेजा गया था। साल 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका के चलते इनको अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था। आजादी के बाद इनको उत्तर प्रदेश की पहली महिला गवर्नर बनाया गया।
- ऊषा मेहता- जब ऊषा मेहता मात्र 5 साल की थीं तब इनकी मुलाकात पहली बार गांधी जी से हुई थी। इसके बाद से ही वे गांधी जी की बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई। साइमन गो बैक के विरोध प्रदर्शन में जब ऊषा मेहता ने हिस्सा लिया तब इनकी उम्र बस 8 साल थी। अपने जज पिता के बार-बार मना करने के बावजूद ऊषा ने स्वतंत्रता आंदोलन में खुल कर हिस्सा लिया। भारत छोड़ों आंदोलन में भाग लेने के लिए इन्होंने पढ़ाई भी छोड़ दी उसके बाद से इन्होंने खुद को पूरी तरह से आजादी के संघर्ष में झोंक दिया।
- कैप्टन लक्ष्मी सहगल- कैप्टन लक्ष्मी सहगल पेशे से डॉक्टर थीं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में बनाई गई आजाद हिंद फौज की अधिकारी के तौर पर इन्होंने अपना योगदान दिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला बोला तब लक्ष्मी सहगल आजाद हिंद फौज में शामिल हुईं। बाद में साल 1946 को इनको पकड़ लिया गया लेकिन फिर बाद में इनको रिहा कर दिया गया।
- सिस्टर निवेदिता- इनका वास्तविक नाम मारग्रेट नोबेल था। स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित होकर ये साल 1898 में भारत आईं। महिलाओं की शिक्षा और उनके विकास को लेकर इन्होंने व्यापक पैमाने पर काम किया। प्लेग जैसी महामारी के दौरान इन्होने बीमारों की खूब सेवा की। भारत की आजादी की लड़ाई में भी इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- मीरा बेन- ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी की बेटी मैडलिन स्लेड गांधी जी के विचारों से इस कदर प्रभावित हो गई कि वे अपने देश को सदा-सदा के लिए छोड़ कर हिंदुस्तान आ गईं। गांधी जी ने बाद में इनको नया नाम दिया- मीरा बेन। मीरा बेन तन और मन से खुद को हिंदुस्तानी मानती थीं इसलिए वे सादे कपड़े को धारण करती थीं। गांवों में घूमती थी और सूत कातती थीं। गांधी जी के साथ इन्होने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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