स्तनपान कराना क्यों जरूरी है? माँ का दूध शिशु के पलने-बढ़ने के लिये जरूरी पोषक तत्वों का एक बेमिसाल मिश्रण होता है और इसमें बड़ी तादाद में रोग-प्रतिकारक तत्व होते हैं जो बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं।
- शरीर की बीमारी से लड़ने की ताकत को बढ़ाकर शिशु को कई तरह की बीमारियों से बचाता है।
- जन्म देने के बाद माँ के शुरूआती दूध को ‘कोलोस्ट्रम’ कहा जाता है। इस दूध में रोग-प्रतिकारक और पोषक तत्वों की भरमार होती है इसलिये इसे ‘लिक्विड गोल्ड’ भी कहा जाता है और यह दूध शिशु को जरूर पिलाना चाहिये।
- जन्म देने के 3 से 5 दिनों के बाद माँ के शरीर में बनने वाले दूध में सुधार हो जाता है और यह दूध ‘कोलोस्ट्रम’ की तुलना में ज्यादा पतला और सफेद होता है। अब इस दूध में केवल उतना ही पानी, मिठास, प्रोटीन और वसा होती है जितना शिशु की पलने-बढ़ने के जरूरी है। इसके बाद माँ के दूध में पौष्टिक तत्वों की तादाद शिशु की जरूरत के हिसाब खुद-ब-खुद घटती-बढ़ती रहती है।
- पाॅउडर दूध या गाय के दूध की तुलना में माँ का दूध आसानी से पचता है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें स्तनपान की नयी माताओ के लिए
क्या है पाॅवडर दूध और माँ के दूध में फर्क?
- माँ का दूध असानी से पच जाता है जबकि पाउडर दूध पचने में समय लगता है।
- माँ के दूध के लिये खर्च नहीं करना पड़ता।
- माँ के दूध में पौष्टिक तत्वों की तादाद के अनुपात की बराबरी नहीं हो सकती।
- जांचो में पता चला है कि माँ का दूध पीने वाले शिशुओं की रोग प्रतिकारक ताकत पाउडर दूध पीने वाले शिशुओं से ज्यादा अच्छी होती है।
- माँ का दूध शिशुओं में डायरिया, कान और सांस के संक्रमण के खतरे को कम करता है।
- ऐसे बहुत कम मामले सामने आये हैं जहाँ माँ का दूध पीने वाले बच्चों में लम्बे समय के बाद भी टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़, मोटापा, दमा, दिल की बीमारी और एलर्जी जैसी परेशानियां हुई हों।
- स्तनपान कराने में कम मेहनत लगती है क्योंकि इसमें दूध बनाने, हाथ धोने, बोतल या बर्तन को कीटाणु मुक्त करने जैसे काम नहीं करने पड़ते।
- रात के समय, शिशु को लगातार दूध पिलाने के बाद भी, माताओं को ज्यादा आराम मिलता है क्योंकि इसके लिये उन्हें बार-बार रसोई में नहीं जाना पड़ता जैसा पाउडर दूध बनाने के लिये किया जाता है।
- माँ का दूध पीने से शिशु और माँ के बीच अपनापन बढ़ता है और इससे उनके रिश्ते को जो मज़बूती मिलती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। पाउडर दूध के मामले में ऐसा नहीं होता।
- शिशु को स्तनपान कराना माताओं के लिये भी बहुत फायदेमंद होता है। हालांकि, इसमें समय लगता है पर स्तनपान कराना, गर्भावस्था के दौरान बढ़े हुये वजन को कम करने का यकीनी तरीका है।
- स्तनपान कराने वाली महिलाओं में टाइप-2 डायबिटीज, स्तन और आॅवेरिअन कैंसर होने की संभावन भी कम होती है।
- स्तनपान कराना नई माताओं को प्रसव के बाद होने वाले अवसाद से निपटने और प्रसव में ज्यादा खून बहने की वजह से होने वाली खून की कमी की भरपाई के लिये मददगार होता है।
स्तनपान कराने का सही तरीका क्या है?
शिशु को स्तनपान कराने का सही तरीका समय के साथ धीरे-धीरे सीखा जा सकता है, इसके लिये जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है। इसके लिये गर्भावस्था और प्रसव के बारे में जानकारी देने वाली जगहों से; या परिवार के ऐसे सदस्य और दोस्त जिन्हें स्तनपान कराने का तर्जुबा हो, की सलाह ले सकते हैं पर कोशिश करें यह सीखते समय आप सभी एक साथ हों -आपके जीवनसाथी और परिवार के खास लोग।
- इसे सीखने के लिये समय देने के लिये तैयार रहें। याद रखें - शिशु को स्तनपान कराते समय ही दूध बाहर आता है।
- जन्म देने के एक घंटे के भीतर ही शिशु को अपना दूध पिलाना शुरू करें, इस समय अपनी सेहत का भी ध्यान रखें क्योंकि स्तनों में दूध भर जाने पर आप यह आसानी से महसूस कर सकती हैं इसलिये जरूरत के मुताबिक शिशु को स्तनपान कराती रहें।
- शिशु को अपनी गोद लेने के बाद आप जैसे ही आरामदायक स्थिति में आयें तो शिशु को उसका मुंह निप्पल के पास लाना सिखायें। शिशु को अपने स्तन के पास लाकर उसकी नाक या मुंह को निप्पल की बराबरी पर लाएं।
Parentune सुझावः आमतौर माँ के दूध की गंध की वजह से शिशु अपने मुंह को खुद-ब-खुद निप्पल के पास ले जाने लगते हैं। कुछ मामलों में एसा न होने पर शिशु के निचले होठ पर निप्पल से गुदगुदी करें जिससे वे अपना मुंह निप्पल के पास लाना सीख सकें।
- पहले 24 घण्टे के दौरान शिशु को 8-12 बार स्तनपान कराना चाहिए। एक बार स्तनपान कराने में 15-20 मिनट या इससे ज्यादा समय भी लग सकता है।
- शिशु भूखा होने पर क्या करता है, आपको उन इशारों के बारे में जानना भी जरूरी है। हो सकता है कि वह ज्यादा चैकन्ना हो जाये, तेजी से हाथ-पैर चलाये, रोये, अपने होठों को गुस्से में भींच ले या किसी भी चीज के उसके गाल या होठ के पास आने पर उसे चूसे।
- शिशु की हरकतों को पकड़ें। जैसे ही उसका पेट भरेगा - वह निप्पल छोड़ देगा या आराम से सो जायेगा। कुछ शिशु दो-तीन घूंट दूध पी कर ही सोने के आदी होते हैं तो माताओं को चाहिए कि ऐसे शिशुओं की पैरों में लगातार गुदगुदी करें या उनके कान को सहलायें जिससे वे भरपेट दूध पी सकें।
- हर बार दूध पिलाने के बाद शिशु को डकार दिलाने का ध्यान रखें। ऐसा न होने पर शिशु दूध पलट देते हैं और यह उनके नाक या मुंह से बाहर आ जाता है।
शिशु भरपेट दूध पी रहा है, यदिः
- दूध पिलाने के बाद स्तनों में नरमी और हल्कापन महसूस हो।
- शिशु को खुद ही डकार आ जाये।
- शिशु दिन भर में 8 से 20 बार साफ या हल्के पीले रंग का पेशाब करे।
- गीलेपन की वजह से दिन भर में 4 से 6 बार शिशु के डायपर बदलने की जरूरत पड़े।
पेरेन्ट्यून सुझावः अपने बिस्तर के सिरहाने शिशु को दूध पिलाने का एक चार्ट बना कर रखें जिससे आपको इस बारे में पता रहे। इसके साथ, हर बार दूध पिलाने के बाद स्तनों में बचे हुये दुध को निकाल दें और उन्हे सूखा रखें और बाद में शिशु को नुकसान न करने वाले किसी माॅइश्चराइजर का इस्तेमाल करें।
नई माताओं को होने वाली आम परेशानियां:
- दूध न निकलनाः शुरूआत में यह किसी भी माँ के साथ हो सकता है पर एक या दो दिन के बाद आमतौर पर दूध निकलने लगता है लेकिन बिल्कुल दूध न निकलने पर आपको डाक्टर की सलाह लेने की जरूरत है।
- दूध की कमीः यदि आपको लगता है कि शिशु आपके दूध से संतुष्ट नहीं हो पा रहा है तो यह पता करने की जरूरत है कि दूध निकालने वाले सुराख पूरी तरह से खुले हैं या नहीं - और शिशु को दूध पिलाना और पम्पिंग करना जारी रखें जिससे ज्यादा दूध बनने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिले।
- दूध का ज्यादा बननाः इसकी वजह से स्तनों का आकार बढ़ने और उनमें दर्द हो सकता है इसलिये जब आपको स्तनों में दूध का भराव महसूस हो तो इस बढ़े हुये दूध को दबा कर निकाल लें और आगे इस्तेमाल करने के लिये संभाल कर रखें।
पेरेन्ट्यून सुझावः इस दूध को आप आस-पास के अस्पाताल में दे सकती हैं जिससे यह किसी वजह से अपने शिशु को दूध न पिला पाने वाली माता के काम आ सके।
- दूध नली का बंद होनाः ऐसा तब होता है जब कोई दूध नली बंद हो जाती है जिसकी वजह से दूध पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाता और वहाँ सूजन आ जाती है। इसकी वजह से स्तन में गांठ पड़ जाती है जिसमें दर्द रहता है पर बुखार नहीं आता लेकिन अगर आपको बुखार आये तो यह एक तरह के स्तन संक्रमण का संकेत है जिसे मैसटीटिस कहा जाता है।
- अंदर दबे हुये/सपाट निप्पलः सपाट निप्पल दूध पीते समय बाहर तनने के बजाय अंदर धंस जाते हैं जिससे कई बार स्तनपान कराते समय कठिनाई होती है; स्तनपान कराते समय इन्हे आप उंगली से दबा कर या पम्पिंग के जरिये बाहर निकाल सकती हैं।
शिशु को होने वाली परेशानियांः
- शिशु का स्तनपान की जगह ठीक से न पहचान पानाः इसकी वजह से माँ और शिशु दोनों को कठिनाई होती है।
- दूध छिद्रों का बंद होनाः यदि निप्पल के छिद्र पूरी तरह न खुले हों तो शिशु को देर तक दूध पिलाते रहने के बाद भी वह रोता रहता है। इससे निजात पाने के लिये जबरन दोनों हाथों से दबा कर दूध निकालने के बजाय निप्पल की हल्की गर्म सिकाई करें। ऐसा करने से सभी बंद सुराख खुल जायेंगे।
- उलझन में पड़नाः स्तनपान कराने में तरह-तरह के तरीकों के साथ कई तरह की चुसनी का इस्तेमाल करने पर शिशु उलझन में पड़ने लगते हैं और ऐसे में मुमकिन है कि शिशु ठीक से स्तनपान न कर सके और वे चिड़चिड़ाने लगते हैं।
पेरेन्ट्यून सुझावः स्तनपान करा रही माताओं को हल्का और पौष्टिक खाना खाना चाहिए जिससे शिशु को गैस की तकलीफ से बचाया जा सके। स्तनपान कराने के पूरे समय के दौरान खाने में कैल्शियम, विटामिन डी और आयरन सप्लीमेंट को शामिल करना चाहिये।
जुड़वा या दो से ज्यादा शिशुओं का स्तनपानः
जुड़वा या दो से ज्यादा शिशुओं को स्तनपान कराना किसी माँ के लिये मुश्किल भरा हो सकता है और जुड़वा शिशुओं के तय समय से पहले पैदा होने की वजह से उन्हे ज्यादा स्तनपान कराने की जरूरत भी होती है। ऐसे में डबल् पम्पिंग की मदद से दूध की जरूरत को पूरा किया जा सकता है क्योंकि आप जितना ज्यादा पम्पिंग की मदद लेंगी, शरीर में दूध भी उतना ज्यादा बनेगा।
आप उन्हे एक-एक करके या ‘डबल् क्रेडल पोजीशन’ का इस्तेमाल करते हुए एक साथ स्तनपान करा सकती हैं। इसके लिए सबसे पहले आरामदायक स्थिति में बैठ जायें। दोनों शिशुओं को सामने लाकर इस तरह अपनी गोद में ले जिससे उनके सिर आपके बाजुओं पर अंदर की ओर हों और उनके पैर ष्ग्ष् का आकार बनाते हुये आपकी गोद में रख जायें।
स्तनपान, कामकाजी माताऐं और इसके लिये कानूनः
बहुत से देशों में शिशु को स्तनपान कराने वाली कामकजी माताओं को घर में रहकर ही आॅफिस के काम करने की सहूलियत दी गयी है। इसके अलावा उनके काम करने वाली जगह पर में अलग से कुछ जगह स्तनपान/पम्पिंग करने के लिये बनाई जाती है और आॅफिस में ही एक शिशुओं की देखभाल और ध्यान रखने के लिये पालना-घर भी होते हैं जहाँ माताऐं अपने शिशु को स्तनपान करा सकती है।
भारत में महिलाओं को प्रसूति के बाद वेतन सहित तीन महीने का छुट्टियां मिलती है पर इसके बाद उन्हे खुद तय करना करना होता है कि वे काम करने के दौरान शिशु को स्तनपान करायें या उसे पाउडर दूध पिलायें क्योंकि हमारे यहाँ स्तनपान कराने वाली कामकाजी माताओं के लिये इस तरह की कोई सहूलियत नहीं दी गयी है।
हालांकि, इस सम्बंध में पहले से जारी कानून में बदलाव की मांग की गई है पर जबतक नये सुझाव ठीक तरह से लागू नहीं होते, नई माताओं को सलाह है कि वे शिशु को स्तनपान कराने के लिये अपने काम करने वाली जगह पर अलग से कुछ जगह और पालना-घर के लिए मांग करें।
आपके शिशु की सलामती सबसे पहले है तो इसकी रक्षा के लिये कुछ भी करना पड़े, करिये। क्या यह लेख उपयोगी लगा? स्तनपान कराने को लेकर अपने खास लम्हों के बारे में हमें बतायें - हमें आपकी राय जानना अच्छा लगेगा।