क्या होता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन(Postpartum Depression)? प्रकार, लक्षण और सावधानियाँ?

कई महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन(Postpartum Depression) यानी प्रसवोत्तर अवसाद हो जाता है। यह स्थिति महिलाओं में विशेषकर पहले बच्चे के जन्म के बाद होती है। हालांकि कुछ महिलाओं में ये समस्या हर बच्चे के जन्म के बाद आती है। इस अवसाद के कारण आमतौर पर मनोवैज्ञानिक होते हैं।
दरअसल आजकल अधिकतर परिवार एकल होते जा रहे हैं। इसलिए पहली बार गर्भधारण करने वाली महिलाओं को डिलिवरी को लेकर परिवार की वरिष्ठ महिलाओं की सलाह कम मिल पाती है। ऐसे में डिलिवरी से संबंधित ज्ञान के अभाव में गर्भवती महिलाओं को भ्रम और घबराहट होने लगती है, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का रूप ले लेती है। इसके अलावा अन्य वजहों से भी ये अवसाद होता है। [इसे पढ़ें - जानें गर्भावस्था में अवसाद से कैसे निपटें ?]
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के प्रकार / Types Of Postpartum Depression In Hindi
दो प्रकार के होता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन ..
#1. जल्द समाप्त होने वाला –
इसे आमतौर पर प्रारंभिक अवसाद (बेबी ब्लूज) कहा जाता है। यह बहुत गंभीर नहीं होता है। यह अवसाद लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं को होता है। यह प्रसव के बाद शुरू होता है और बिना किसी इलाज के कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है।
#2. देर तक रहने वाला –
देर तक रहने वाले अवसाद को ही अधिकतर डॉक्टर प्रसवोत्तर अवसाद मानते हैं। यह काफी गंभीर होता है। यह अवसाद प्रसव के बाद कई हफ्तों से लेकर एक साल तक भी रह सकता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो यह अवसाद 10-16 प्रतिशत महिलाओं को होता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन (प्रसवोत्तर अवसाद) के लक्षण / Symptoms Of Postpartum Depression In Hindi
प्रसवोत्तर अवसाद के लक्षण अवसाद के प्रकार व उसकी गंभीरता पर निर्भर करते हैं, लेकिन आमतौर पर महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद निम्न परेशानियां होती हैं।
- उदासी, किसी भी चीज में मन न लगना
- अधिक थकान, कोई ऊर्जा न होना, हताशा
- मन में अपराधबोध
- भूख कम लगना
- मन दुखी रहना, रोने का मन करना
- बेचैनी, चिंता करना, घबराहट
- भय, नींद कम आना
- दिमाग चिड़चिड़ा होना
- बच्चे में रुचि कम होना
- शिशु की असुरक्षा का भाव
- भविष्य अंधकार में दिखना
पोस्टपार्टम डिप्रेशन में किन बातों का ध्यान रखें ? What are the things to remember in the Postpartum Depression In Hindi ?
इलाज के दौरान ध्यान रखी जानें वाली बातें...
- ये अवसाद डिलिवरी के बाद शुरू होता है। यदि सही समय पर ध्यान दिया जाए और उचित परामर्श लिया जाए, तो ये जल्दी ठीक हो जाता है। यदि 2-3 हफ्ते में ये ठीक नहीं होता तो मनोचिकित्सक की परामर्श लें। आंकड़ों के अनुसार करीब 20 प्रतिशत महिलाओं में प्रसवोत्तर अवसाद 2 हफ्ते से अधिक तरहता है और उन्हें इलाज की जरूरत पड़ती है। 80 प्रतिशत महिलाओं में यह थोड़ा ध्यान देने पर खुद ही ठीक हो जाता है। [इसे पढ़ें - इस तरह कन्ट्रोल करे पोस्टपार्टम डिप्रेशन]
- इस अवसाद का सबसे सकारात्मक पहलु ये है कि इसका इलाज संभव है। आमतौर पर थेरेपी और कुछ मामलों में दवाओं से इसका ट्रीटमेंट किया जाता है। हालांकि थेरेपी और दवा दोनों ही चिकित्सक की सलाह पर ही लेना चाहिए।
- शरीर पर जरा ध्यान देकर खुद भी इस समस्या से निकला जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि जब भी संभव हो आप सोएं या आराम करें। इसके साथ ही सेहतमंद खाना खाएं। ज्यादा देर तक भूखी न रहें। समय निकालकर कुछ व्यायाम करें।
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