शिशु के गिर जाने या चोट लगने पर क्या करना चाहिए ? जानें 4 ध्यान देने वाली बातें

ठीक इस समय जब मैं यह ब्लाॅग लिख रही हूँ, सच्चे मन से यह आशा और कामना करती हूँ कि किसी भी माँ के (मेरे खुद के भी) जीवन में वह दिन कभी न आए जब हम अपने प्यारे और मासूम बच्चे को जख़्मी और चोटिल होते हुए देखें। इस बात को लेकर किसी ज्ञानी पुरूष ने बहुत अच्छा कहा है, ‘सभी बच्चों का गिरना और चोटिल होना तय है, पर यह हम पर निर्भर है कि हम उस डर और घबराहट के समय का सामना कैसे करते हैं’।
पहली बार इस डर से मेरा सामना तब हुआ जब मेरी बेटी की उम्र 5 महीने से थोड़ी ज्यादा थी और उसने ‘दोहरी पलटी’ - करवट लेकर पेट के बल दो बार पलट जाना शुरू किया था। मैं उसका डायपर बदल रही थी और कुछ पलों के लिए उससे दूर होते ही मुझे अचानक अहसास हुआ कि वह पलटी और ऐसा करते हुए पलंग के किनारे पर लटक गई। हालांकि उसके गिरने से पहले ही मैंने उसे हवा में थाम लिया पर उस समय कुछ भी हो सकता था पर दूसरी बार हमारी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी। यह उस समय की बात है जब उसने बिना सहारे के खड़े होना सीखा था और मैंने उसे सोफे पे बिठाया हुआ था। मैं उसके खिलौने उठाने के लिए झुकी और अचानक मुझे ‘धप्’ से कुछ गिरने की आवाज सुनाई दी। एक क्षण में मेरी बेटी जमीन पर गिरी पड़़ी थी। वो जोर से चिल्ला कर रोई और फिर वहाँ डर, घबराहट, शोर-शराबा, भगदड़ और चोट की वजह से उसके माथे पर पड़े लाल निशान के दर्द के अहसास के सिवा और कुछ न था।
इस दुर्घटना के बाद मुझे ऐसे तौर-तरीके बनाने की सख्त जरूरत महसूस हुई जिससे भविष्य में ऐसा दुबारा होने पर ऐसे हालात में संभला जा सके तो मैनें अपने साथ की दूसरी माताओं से इस बारे में बात करना और ऐसी स्थिति को कैसे संभालना है, इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा पढ़ना शुरू किया और इस तरह से मैंने कुछ बहुत काम आने वाली जानकारी और तौर-तरीकों का पता लगाया जो मैं आपके साथ बांटना चाहती हूँः-
शिशु के गिर जाने की स्थिति में क्या करना चाहिए/ What to Do If Infant Fall in Hindi
शिशु के गिरने, चोट लगने से उत्पन्न हालातों का सामना कैसे किया जाए और शिशु को गिरने से बचाने के लिए आइए जानें कुछ अनुभवी माताओं के जांचे-परखे तरीकों के बारें में।
1. क्या हमें वाकई डरने की जरूरत है ?
यह अब तक की सबसे जरूरी सलाह है जो मेरी दोस्त और एक ज्यादा तर्जुबेकार माता से मिली है। शिशु के गिरने पर हर बार आपको घबराने के जरूरत नहीं है। शिशु गिरते ही हैं, तो पहली जरूरी बात है यह है कि आप शिशु को दिलासा दें क्योंकि आपका घबरा जाना और चिल्लाना शिशु को और ज्यादा डराता है तो ऐसे में शिशु को जोर से दबा कर अपने सीने से लगा लेना कमाल का काम करता है।
जरूरी सलाह - शिशु के गिरने के बाद उसमें भरोसा जगाने और उसे शांत करने के लिए आपका प्यार-दुलार और देखभाल बहुत मददगार होती है।
2. आपको क्या करना चाहिए ?
जैसे ही आप इन हालात पर काबू पा कर संभल जाती हैं तो सबसे पहले यह पता लगाएं कि गिरने की वजह से शिशु को लगने वाली चोट कितनी गंभीर है और कहीं उसे डाॅक्टरी मदद की जरूरत तो नहीं है, जैसेः
- शिशु की आखें पलट जाएं
- शिशु बेहोश हो जाए
- शिशु अपनी आखें न खोल रहा हो
- शिशु का शरीर अकड़ जाए
- गिरने से कुछ देर के बाद शिशु अचानक अशांत हो जाए
- कोई बाहरी चोट/घाव
- शिशु में उल्टी हो या बैचेनी हो
- शरीर की किसी खास जगह पर छूने से शिशु दर्द से चीख पड़ता हो
ऊपर बताए गए लक्षण गिरने की वजह से लगने वाली अंदरूनी चोट की ओर इशारा करते हैं और ऐसे में बिना देरी किए शिशु को डाॅक्टर के पास ले जाने की जरूरत है। चोट वाली जगह पर गुम्मड़ पड़ने या सूजन आने के मामले में, जैसा आमतौर पर गिरने के बाद होता ही है, बर्फ से ठंडी सिंकाई करें।
NOTE - यदि बर्फ की सिंकाई करते समय ठंडा लगने की वजह से शिशु बिदके तो यह एक अच्छा संकेत है।
3. शिशु पर नज़र रखें
यदि आपका शिशु ज्यादा जोर से नीचे गिरा है और इसे लेकर आपके मन में किसी भी तरह की कोई शंका है तो शिशु पर 24 घंटे तक नज़र रखें और इन लक्षणों पर गौर करेंः
- उल्टी होना
- बेचैनी होना
- शिशु को दौरा पड़े या उसका शरीर अकड़ जाए
- खून बहना/घावों का उभरना
अपने सहज् ज्ञान पर भरोसा करें और यदि आपको शिशु के हाव-भाव में कोई भी बदलाव दिखाई दे तो जोखिम न लें और बिना देरी किये अपने शिशु के डाॅक्टर के पास पहुचें। यदि शिशु शांत है, ठीक से खा-पी रहा और नींद भी ले रहा है तो उसकी रक्षा करने के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करें।
4. बचाव के लिए क्या करें ?
जैसे आपका शिशु चलना-फिरना शुरू करता है, घर को शिशु के लिए सुरक्षित बनाना बहुत थकाने वाला काम हो जाता है पर नीचे दिए गए तरीकों को अपनाकर आप इसे आसान कर सकती हैंः
- शिशु पर हमेशा नज़र रखें
- शिशु को खासकर नुकीली चीजों के पास, किसी ऊंची जगह और बाथटब् जैसी जगहों पर कभी अकेला न छोड़ें
- खिड़कियों में चटकनी/कुंडी जरूर हों और शिशु को बालकनी से दूर रखने के लिए भी अच्छा इंतजाम हो
- ऊंचाई-यह गिरने की सबसे बड़ी वजह होती है इसलिए यह पक्का करें कि शिशु को कभी भी किसी बहुत ऊंची जगह पर अकेला न छोड़ा जाए
- घर के नुकीले कोने को सुरक्षित करें। लिंडेम बफर्स की मदद से यह आसानी से किया जा सकता है और यह आॅनलाइन खरीदे जा सकते हैं। इसके अलावा कोई भी ऐसी चीज जो शिशु को नुकसान पहुंचा सकती है, को शिशु की पहंुच से दूर कर दें
- हल्के और फिसलने वाले पैरदान को हटा दें क्योंकि इनकी वजह से फिसलने पर गंभीर चोट आती है
- अपने पास अच्छी तादाद में सूखे पोंछे रखें जिससे घर में किसी जगह पर गीला या फिसलन होने पर उसे सुखा कर खत्म किया जा सके
- सोते समय शिशु की अच्छी सुरक्षा के लिए उसके पलंग पर के चारों ओर रेलिंग लगाएं और यदि आप शिशु की सुरक्षा और उसे गिरने के बचाने के लिए ज्यादा ही संजीदा हैं तो उसके बिस्तर को जमीन पर लगाने से अच्छा कुछ नहीं।
जरूरी सलाह - शिशु को कभी भी किसी ऐसी जगह पर अकेला न छोडें जो उसके कद से ज्यादा ऊंची हो।
अब आखिरी और सबसे जरूरी बात, शिशु के गिरने या चोटिल होने पर अपने अंदर यह भावना न लाएं कि आप एक लापरवाह माँ हैं। यह हर जगह और हर किसी के साथ होता है। एक अच्छी माँ होने के लिए आपके बहुत-बहुत शुभकामनाएं !!
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