ग्रीन क्रैकर्स या E पटाखे ...
त्योहार का अवसर हो या अन्य किसी प्रकार का सेलेब्रेशन। खुशियां मनाने के लिए अक्सर लोग पटाखे फोड़ते हैं और आतिशबाजी करते हैं। और जब बात दीपावली की हो तो पटाखें फोड़ने को लेकर लोग पहले से ही प्लान करना शुरू कर देते हैं। पटाखे हमें कुछ पलों की खुशियां तो जरूर दे सकते हैं लेकिन इसके बाद होने वाले पटाखों के साइड इफेक्ट हम सबके लिए परेशानी का सबब बन जाता है। पटाखों की शोर, इससे निकलने वाले धुएं भारी संख्या में प्रदूषण का कारण बन जाते हैं। क्या कुछ ऐसा उपाय नहीं हो सकता है कि पटाखों वाली खुशियां भी हमें मिल जाए और प्रदूषण का खतरा भी कम हो जाए। आज के इस ब्लॉग में हम आपको E-क्रेकर्स और ग्रीन पटाखों की खूबियों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
सबसे पहले तो आप ये जान लीजिए कि आखिर E-क्रेकर्स कहते किसको हैं? दरअसल E- क्रेकर्स रिमोट के माध्यम से छोड़े जाने वाले पटाखें हैं। यानि की अब रिमोट से चलने वाले पटाखे भी आ गए हैं, रिमोट का बटन दबाते ही पटाखे जल उठेंगे। अपने देश में दीपावली के अवसर पर पहली बार E-लड़ी, E-अनार, E-स्पार्कल पटाखे तैयार किए गए हैं। हम आपको बता दें कि सामान्य पटाखे या ग्रीन पटाखे की तरह E- क्रेकर्स भी उसी तरीके से आवाज निकालते हैं और रंग बिरंगी रोशनी बिखेरते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात की E- क्रेकर्स में धुआं नहीं होता है और ना ही इसमें से PM2.5 निकलता है।
इन पटाखों को काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और नेशनल एन्वॉयरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट(NEERI) ने मिलकर तैयार किया है।
एक और महत्वपूर्ण बात की इसको तैयार करने के लिए प्रोजेक्ट में महिला वैज्ञानिकों का अहम योगदान रहा है।
E- क्रेकर्स हाई वोल्टेज इलेक्ट्रोस्टैटिक डिस्चार्ज के सिद्धांत पर काम करता है और इस प्रक्रिया की मदद से ही इसमें से लाइट और साउंड इफेक्ट का नजारा देखने को मिलता है।
पूर्व के प्रचलित पटाखों में बोरियम नाइट्रेट नाम का इस्तेमाल किया जाता था और एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर सांस की नली या खाने के माध्यम से शरीर के अंदर पहुंच जाए तो जानलेवा भी हो सकता है। डायरिया, पेट दर्द, सांस की समस्या, हार्ट बीट का बढ़ जाना जैसी समस्याएं हो सकती है।
ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट नहीं होता और इसके बदले में पोटैशियम नाइट्रेट (KNO3) का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि पोटैशियम नाइट्रेट के सीधे संपर्क में आने पर आंखों में जलन और स्किन पर रैशेज जैसी समस्याएं हो सकती है। लेकिन सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे कम नुकसानदेह होते हैं।
ग्रीन पटाखों में भी सल्फर डाई ऑक्साइड का प्रयोग होता है और मानव शरीर के लिए ये भी नुकसानदेह हो सकता है।
पाइरोटेक्निक तकनीक से बनने वाले ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में कम नुकसानदेह होते हैं लेकिन इसको भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।
सामान्य पटाखों में 160 से 200 डेसिबल तक आवाज होती है जबकि ग्रीन पटाखों में 100 से 130 डेसिबल तक ही आवाज होते हैं।
नवजात शिशु, बच्चे और गर्भवती महिलाओं के लिए पटाखे नुकसानदेह होते हैं। अस्थमा रोगियों व हार्ट की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए पटाखे घातक सिद्ध हो सकते हैं।
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