रक्षाबंधन को इसलिए कहा जा ...
भाई-बहन का त्योहार रक्षाबंधन एक बार फिर आ गया है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाला यह त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है। इस त्योहार में बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए उसकी रक्षा, लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती है। इसके साथ ही बहन राखी का धागा बांधकर अपनी रक्षा के लिए भाई से प्रण लेती है। कई लोग इस मौके पर अपने बड़ों जैसे दादा, पिता, गुरु, पंडित व सीमा पर तैनात जवानों को भी राखी बांधते हैं। इसके अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं, लेकिन मुख्य रूप से इसे भाई-बहन का ही त्योहार कहा जाता है। इसके पीछे कई वजह हैं। इससे कई पौराणिक व ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी हुईं हैं। इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे आखिर क्यों रक्षाबंधन को भाई-बहन का त्योहार कहा जाता है।
ये हैं कथाएं
कृष्ण-द्रौपदी - सबसे पहले राखी बांधने का प्रसंग महाभारत में आता है। दरअसल शिशुपाल के वध के दौरान भगवान कृष्ण की अंगुली सुदर्शन चक्र से कट गई थी और खून बह रहा था। इसे देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर उस कपड़े को भगवान कृष्ण की अंगुली पर बांध दिया। इस पर कृष्ण ने द्रौपदी से वादा किया कि वह मुश्किल वक्त में द्रौपदी की रक्षा करेंगे। चीर-हरण के दौरान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा कर वचन पूरा किया। पौराणिक विद्वानों के अनुसार जिस दिन उन्होंने साड़ी का किनारा बांधा था, वह सावन पूर्णिमा का ही दिन था। ऐसे में उसी दिन से राखी का त्योहार मनाया जाने लगा।
यम-यमुना – पौराणिक कथाओं के अनुसार रक्षाबंधन की शुरुआत यम और उनकी बहन यमुना के बीच राखी बांधने के बाद से हुई है। कहा जाता है कि यमुना ने यम को राखी बांधी थी। इसके बाद यम ने यमुना को अमरत्व का वरदान दिया। इसके अलावा कहा जाता है कि यम ने रक्षाबंधन को लेकर ये वरदान भी दिया था कि जो भाई इस मौके पर बहन से राखी बंधवाएगा और आजीवन उसकी सुरक्षा का वचन देगा, उसे अमरत्व की प्राप्ति होगी।
लक्ष्मी व बलि – कथा है कि लक्ष्मी ने राजा बलि के यहां से बिष्णु जी को ले जाने के लिए उसके महल में खुद को आश्रयहीन बताते हुए शरण ली। सावन पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर एक सूती धागा बांधते हुए उसकी रक्षा करने की मांग की। राजा के हां कहने पर उन्होंने द्वारपाल की तरफ इशारा किया, जो विष्णु थे। बलि ने वचन की वजह से विष्णु जी को वहां से विदा किया।
कर्मावती व हुमायूं – राखी के संबंध में रानी कर्मावती और हुमायूं को लेकर भी कहानी प्रचलित है। इतिहास के अनुसार कर्मावती ने एक बार अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने कर्मावती को बहन मानकर उनके राज्य को शत्रुओं से बचाया।
रुक्साना व पोरस – रक्षाबंधन को लेकर इतिहास में राजा पोरस और सिकंदर की पत्नी रुक्साना के बीच राखी भेजने की भी एक कहानी है। यूनान का बादशाह सिकंदर जब विश्व विजय अभियान के तहत भारत पहुंचा, तो उसकी पत्नी रुक्साना ने राजा पोरस को एक धागे के साथ संदेश भेजते हुए निवेदन किया कि वह युद्ध में सिकंदर को जान से न मारे। कहा जाता है कि राजा पोरस ने इस निवेदन की लाज रखी और युद्ध में जबब एक बार उसका पक्ष मजबूत हुआ तो उसने सिकंदर की जान बख्श दी।
रक्षाबंध का मंत्र – येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
राखी बांधने का सही समय : पंडित श्रीधर खांडल के मुताबिक रक्षाबंधन के दिन अगर शुभ मुहुर्त में राखी बांधा जाए तो इसके अत्यधिक लाभ मिलते हैं। पंडित श्रीधर खांडल बताते हैं कि रविवार को सुबह 7 बजकर 43 मिनट से 9 बजकर 18 मिनट तक चर, सुबह 9 बजकर 18 मिनट से 10 बजकर 53 मिनट तक लाभ, 10 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक अमृत, इसके बाद रात के 8 बजकर 13 मिनट तक राखी बांधने का मुहुर्त रहेगा।
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