क्या हैं ऑटिज्म (Autism) ...
ऑटिज्म(Autism) एक मानसिक विकार (Disorder) है जिसके लक्षण बच्चे के विकास के दौरान धीरे-धीरे नजर आते हैं। यह विकार बच्चे के सामान्य बर्ताव पर असर करता है और उसके लिए दूसरों के साथ सामाजिक संबंध स्थापित करना कठिन बना देता है। आमतौर पर जिन बच्चों को यह तकलीफ होती है उनका विकास दूसरे बच्चों की तुलना में असामान्य होता है और वे दूसरे बच्चों से अलग देखते, बोलते और महसूस करते हैं। चूंकि ऑटिज्म कोई बीमारी न होकर एक विकार है इसलिए इसे ठीक नहीं किया जा सकता यानि यह परेशानी पूरी उम्र बनी रह सकती है।
ऑटिज्म होने की वास्तविक वजहों के बारे में फिलहाल कोई सटीक जानकारी मौजूद नहीं है पर कई शोधों में पता चला है कि गर्भ में पलने वाले शिशु पर पर्यावरण में मौजूद रसायनों से होने वाला संक्रमण तन्त्रिका तंत्र ( नर्वस सिस्टम) पर गहरा असर करता है, जो ऑटिज्म का कारण हो सकता है।
इसके अलावा कई टेस्ट से यह भी पता चलता है कि गर्भावस्था के दौरान मां के शरीर में थायरॉइड हारमोन की कमी, शिशु का तय समय से पहले जन्म लेना, गर्भ/प्रसव के समय शिशु को उचित मात्रा में ऑक्सीजन न मिलना या गर्भावस्था में मां को होने वाली बीमारी व पोषक तत्वों की कमी से भी ऑटिज्म हो सकता है।
आमतौर पर ऑटिज्म के लक्षण कम उम्र में नहीं दिखते पर शिशु के जन्म के छह माह से एक वर्ष के अंदर ही उसके व्यवहार पर ध्यान देकर यह पता कर सकते हैं कि वह इससे पीड़ित है या नहीं, जैसे...
Parentune की सलाह है - यदि शिशु में यह लक्षण दिखाई दें तो माता-पिता को तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
शिशु के जन्म के समय ऑटिज्म विकार का पता लग पाना मुमकिन नहीं होता लेकिन जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, इस विकार के लक्षण साफ होने लगते हैं। ऑटिज्म विकार तीन तरह का होता हैः
ऑटिज्म से संबंधित सभी सवालों का जवाब दे रही हैं हमारी एक्सपर्ट डॉ.हिमानी खन्ना
। वीडियो जरूर देखें.. जानिए ऑटिज्म के लक्षण व उपचार का उपाय
इनके अलावा भी ऑटिज्म विकार (Autism Disorder) के लक्षण कई तरह के हो सकते हैं। आमतौर पर इससे पीड़ित ज्यादातर लोगों में एक जैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं पर जरूरी नहीं कि इनका असर सभी पर एक जैसा ही हो। कुछ पीड़ितों को सीखने-समझने में कठिनाई होती है, कुछ को दूसरी दिमागी परेशानियां हो सकती हैं या कोई अन्य समस्या भी हो सकती है पर इसके बावजूद भी ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे सीखते और विकास करते हैं। अगर उनकी परेशानी के मुताबिक सहयोग किया जाए तो इससे पीड़ित बच्चों की सामान्य जीवन जीने में मदद की जा सकती है।
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