वो 10 गेम्स जो अब गुम हो ...
वो खेल जो हम खेला करते थे सच में बहुत याद आते है। सोचकर ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। क्या दिन थे वो भी सच में। जब स्कूल से आने के बाद ही बस्ता रखकर खेलने के लिए दौड़ पड़ते थे। पहले से ही सारी प्लानिंग फिक्स होती थी, की कैसे, किसको, किसके घर से बुलाना है। छुपन-छुपाई, पोसम-पा, 16 पर्ची ढप, पिट्ठू, खो-खो, कबड्डी, रस्सी-टप्पा, टिप्पी-टिप्पी टैप, बैट-मिन्टन जैसे खेलो को बहुत मिस करती हूँ। दिन-दिन भर खेला करते थे, ना धुप की परवाह होती थी, ना ठण्ड की, ना लू लगने का डर। बस दौड़ते ही रहते थे। कपडे कही, हम कहीं, बाल कही, जब तक मम्मी डंडा लेके पीछे ना दौड़े की होमवर्क करलो और पापा के घर पर लौटने से पहले वापस आना जुरुरी था। गर्मियों की छुट्टियों में बगीचों में आम इक्टठा करने की दौड़, पेड़ो पर चढ़ कर खेलना पैरो को लटका कर। शाम को लाइट के भाग जाने पर सीधा छत पर पहुच जाते थे हम सब बच्चे छुपन-छुपाई खेलने के लिए। अब तो बिजली के जाते ही जैसे लगता है मुसीबत ही आ गयी हो और उन दिनों तो हम बच्चे लाइट के भाग जाने का इंतजार ही किया करते थे सच में वो सारे खेल जैसे कही गुम हो गए हो आज हम चाहकर भी अपने बच्चो के लिए वो माहौल नहीं बना सकते। आधुनिकता भरे इस जीवन ने विकास के नाम पर दिया तो बहुत कुछ पर हमसे छीना भी बहुत कुछ। आज हर जगह बस डर का माहौल बन गया है। ये मत करो, बाहर मत जाओ, मिटटी में खेलोगे तो बीमार पड जाओगे, यहाँ मत चढो, यह गलती किसी और की नहीं हमारी ही है, हम खुद ही अपने बच्चो को बस डराने का काम करते है और बच्चे मोबाइल फोंस, विडियो गेम्स, इन्टरनेट एप्स, टीवी में ही बिजी हो जाते है।
यदि आप अपने बच्चे को खेलने से रोक रहे है तो वास्तव में आप उनका बचपन छीन रहें है। बच्चो को स्कूल के बाद खेलने जरुर भेजिए। बच्चो को खेलो के लिए जरुर प्रोत्साहित करें।
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