डोरेमोन : जन्म से लेकर अं ...
पिछली कई पीढ़ियों से बच्चों के बीच में बेहद लोकप्रिय रहा है डोरेमोन। इसके किस्से, इसके डायलॉग, इसकी शरारतें ये सब कुछ बच्चों को खूब लुभाता रहा है। आलम ये है कि बच्चों का बस चले तो घर के टीवी पर बस कार्टून शो दिखना चाहिए और डोरेमोन का शो उसमें भी टॉप पर रहता है। कार्टून कैरेक्टर डोरेमोन एक छोटी सी रोबोटिक बिल्ली है। आज हम आपको इस ब्लॉग में डोरेमोन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं और इसके साथ डोरेमोन को लेकर बच्चों मे जो दीवानगी देखने को मिलती है क्या उसके कुछ नुकसान भी हैं इन सभी विषयों पर चर्चा करने वाले हैं।
डोरेमोन एक जापानी फिक्शनल कैरेक्टर है जिसे राइटर फुजीको एफ फुजियो ने तैयार किया था। राइटर फुजीको मांगा मैगजीन (जापान की ग्राफिकल कॉमिक है) के लिए कुछ नया करना चाहते थे। आइडिया की तलाश कर रहे फुजीको ने सोचा कि काश उनके पास कोई ऐसी मशीन होती जो उनकी परेशानियों का हल निकाल सकती। ये सोचते हुए वो बेटी के खिलौने में पैर लगने से गिर गए और उन्हें पड़ोस की बिल्लियों के लड़ने की आवाज सुनाई दीं। इन तीनों घटनाओं को मिलाकर उन्हें एक बिल्ली का कैरेक्टर बनाने का आइडिया आया, जिसके पास एडवांस गैजेट थे।
डोरेमोन के नाम को करोड़ों लोग जानते हैं लेकिन इसके नाम का मतलब क्या है इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। दरअसल डोरेमोन एक मिला-जुला नाम है, जहां डोरा (Dora) का मतलब है स्ट्रे यानी आवारा, वहीं एमोन (Emon) जापानी पुरुषों का नाम है। तो इसका अर्थ हुआ आवारा पुरुष।
आपको बता दें कि साल 2005 में डिज्नी इंडिया के हंगामा टीवी चैनल में सबसे पहली बार डोरेमोन के शो को प्रसारित किया गया। उसके बाद से डोरेमोन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बच्चों के सर्वाधिक लोकप्रिय शो में डोरेमोन की गिनती होती है। डोरेमोन की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इसे फिर डिज्नी चैनल पर भी दिखाया जाने लगा।
ये तो आप जानते होंगे की तमाम कार्टून शो में उस कार्टून कैरेक्टर के लिए वॉयस ओवर ऑर्टिस्ट होते हैं जो उस चरित्र को अपनी आवाज देते हैं। वॉयसओवर और विजुअल का ये मिश्रण इतना परफेक्ट होता है कि बच्चे उस आवाज को ही कार्टून कैरेक्टर की असली आवाज मान लेते हैं। डोरेमोन को भारत में तकरीबन 14 साल तक आवाज बनी रहीं सोनल कौशिक।
बच्चे इस तरह के कार्टून कैरेक्टर से ज्यादा कनेक्ट हो जाते हैं जिनके बारे में उन्हें ये एहसास हो जाता है कि वो मुश्किल काम को आसान बना देता है। बच्चे ये मानकर चलते हैं कि काश उनके पास भी एक डोरेमोन होता जो उनकी जिंदगी को आसान बना देता। डोरेमोन के बारे में बच्चों के बीच भी यही अवधारणा बनी हुई है। और शायद यही सबसे बड़ी वजह है कि हर बच्चे की ख्वाहिश होती है कि उसके पास भी एक डोरेमोन होना ही चाहिए।
दैनिक भास्कर को दिए अपने एक इंटरव्यू में सोनल कौशिक ने जानकारी देते हुए कहा कि जिस दौरान भारत में डोरेमोन के शो को लॉन्च करने की योजना तैयार की जा रही थी उस दौरान कई बच्चों ने ऑडिशन दिया। डोरेमोन के शो के अनेक किरदारों के लिए वॉयस ओवर आर्टिस्ट का ऑडिशन लिए जा रहे थे। सोनल कौशिक को डोरेमोन के लिए चयन किया गा। दिलचस्प बात ये है कि जापान में डोरेमोन की आवाज काफी रोबोटिक थी। शो के निर्माताओं को सोनल कौशिक की नैचुरल आवाज ज्यादा पसंद आई और तय किया गया कि सोनल की क्यूट आवाज ही भारत में डोरेमोन की आवाज बनेगी। अपने अनुभवों को साझा करते हुए सोनल कौशिक ने ककहा कि डोरेमोन के चलते वो भी काफी लोकप्रिय हो गई और अब भी वे जहां जाती हैं तो बच्चे उनको डोरेमोन ही बुलाते हैं।
डोरेमोन को भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय कार्टून शो बताया जाता है और करोड़ों की संख्या में इसके दर्शक हैं। आपको बता दें कि सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े लोग भी डोरेमोन के शो को बड़े चाव से देखते हैं। साल 1980 में डोरेमोन की पहली फीचर फिल्म रिलीज की गई थी और उसके बाद से डोरेमोन की अब तक कुल 41 फिल्में बन चुकी है। अभी हाल ही में यानि कि मार्च 2022 में डोरेमोन: नोबिताज लिटिल स्टार वॉर्स 2021 (Doraemon the Movie: Nobita's Little Star Wars 2021 )रिलीज किया गया। इस फिल्म ने दुनियाभर में कुल 22 मिलियन डॉलर का कलेक्शन किया।
डोरेमोन भले दुनियाभर में लोकप्रिय हो लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसे देश भी हैं जहां इस पर बैन लगा दिया गया है।
अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान में साल 2016 में डोरेमोन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई। प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाले लोगों की दलीय ये थी कि बच्चों पर इस शो का काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। लगभग 3 साल के बाद डोरेमोन पर पाकिस्तान में बैन लगा दिया गया।
बांग्लादेश में भी डिज्नी चैनल पर बैनल लगा दिया गया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष चतुर्वेदी ने सूचना प्रसारण मंत्रालय और अन्य विभागों को नोटिस भेजकर डोरेमोन और शिनचैन जैसे शो पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
आशीष चतुर्वेदी का कहना है कि इस तरह के कार्टून शो के दुष्परिणाम अब बच्चों के हाव-भाव, व्यवहार और खान-पान पर भी दिखने लगे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक हर सप्ताह 3.6 करोड़ बच्चे कार्टून देखते हैं और उनमें से आधे शिनचैन और डोरेमोन को देखना पसंद करते हैं।
अपने दावों में आशीष बताते हैं कि उन्होंने कुल 100 घरों में अध्ययन किया है। इसके अलावा कुछ डॉक्टर्स ने भी इसे बच्चों के लिए घातक माना है। डोरेमोन के अलावा शिनचैन जिस तरीके से अपनी मां का मजाक उड़ाता है या लड़कियों के साथ फ्लर्ट करता है इसके अलावा उसकी भाषा को लेकर भी एक्सपर्ट बताते हैं कि 5 साल के बच्चे के बौद्धिक विकास में ये बाधक हो सकता है।
दूसरी तरफ डोरेमोन जिस तरीके से पढ़ाई लिखाई में जी चुराने वाले नोबिता की मदद गैजेट्स से करता है तो इस शो को देखने वाले बच्चे भी अपने माता पिता से ऐसे गैजेट्स या रोबोट दिला देने की उम्मीद लगा लेते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक बच्चे के मन में इस तरह के शॉर्टकट माध्यम से अपना काम निकालने की प्रवृत्ति विकसित हो सकते हैं और ये बच्चे के सर्वांगीण विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
डोरेमोन के करोड़ों फैंस उसकी एंडिंग के बारे में सोच-सोचकर अभी से परेशान हैं। डोरेमोन की एंडिंग के बारे में हालांकि अभी सब कुछ तय नहीं किया गया है लेकिन स्टैंड बाय मी डोरेमोन फिल्म के निर्देशक यूची यादी और ताकाशी यामाजाकी ने जानकारी देते हुए बताया है कि ऐसा मुमकिन है कि नोबिता और शिजुका की शादी हो जाए और जिससे डोरेमोन का मिशन पूरा हो जाए फिर वो फ्यूचर में वापस लौट सकता है। फ्यूचर में वापसी को लेकर अब आपके मन में विचार आ रहे होंगे तो हम आपको बता दें कि डोरेमोन अभी फ्यूचर से ही वर्तमान में आया है। कहानी के अनुसार डोरेमोन का जन्म साल 2112 में होगा और वो अभी भविष्यकाल से नोबिता की जिंदगी को आसान बनाने के लिए आया है। साल 1969 में डोरेमोन को बनाया गया था और इस लिहाज से उसकी उम्र अभी 54 साल की हो गई है। साल 2012 में जापान की सरकार ने डोरेमोन के जन्म से 100 साल पहले ही उसका जन्मदिन मनाया। डोरेमोन को जापान के कावासाकी शहर का अधिकृत नागरिक घोषित किया गया है। ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि किसी एक कार्टून कैरेक्टर को किसी देश की नागरिकता दी गई हो।
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