हल्का-फुल्का सप्ताहांत ले ...
गर्भावस्था हर महिला के लिये उसके जीवन को पूर्ण कराने वाला अहसास होता है। यह एक सुहावना सफर होता है तो इस समय आपको सावधानी और देखभाल की बहुत जरूरत होती है। हर औरत के शरीर की बनावट अलग-अलग होती है इसलिये किसी की गर्भावस्था की तुलना दूसरे से नहीं करनी चाहिये। यहाँ मैं आपको कुछ सुझाव देना चाहती हूँ, जिन्होने मेरे इस सफर को खुशनुमा और अनमोल बना दिया। मुझे उम्मीद है कि ये सुझाव आपको भी चिंतामुक्त रखेंगे और आपके 9 महीने के इस सफर को मजेदार बना देंगे।
1. पैदल चलनाः पैदल चलना वो व्यायाम है जिसे मैनें तब शरू किया जब मुझे अपने गर्भवती होने के बारे में पता चला। मैंने गर्भावस्था की पहली और दूसरी तिमाही में हर रोज 2 घंटे (1 घंटा सुबह और 1 घंटा शाम) टहलने की आदत बनायी पर आखिरी तिमाही में मैंने इसे कम कर दिया। अगर पहले-कभी आपको व्यायाम करने की आदत न रही हो तो पैदल चलना व्यायाम का सबसे आसान तरीका है और इसमें ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती। टहलना आपके शरीर को सेहतमंद और चुस्त-दुरूस्त रखता है। मैं पूरी गर्भावस्था के समय नौकरी करती रही इसलिये दोपहर के खाने के समय और आॅफिस से लौट कर इसके लिये समय निकालने में मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई। हालांकि इसको लेकर ज्यादा बेसब्र न हों और थकने से बचें। अपने शरीर की आवाज सुनें और जरूरत हो तो बीच-बीच में आराम करें। अगर आप गर्भावस्था के पहले से व्यायाम कर रही हैं तो अपनी डाक्टर की सलाह से कुछ हल्के योगासन भी कर सकती हैं।
2. सांस का व्यायामः सांस लेने-छोड़ने के व्यायाम में मेरे शरीर और मन को चिंतामुक्त रखने में मदद की। शरीर में बहुत से हार्मोनल बदलावों की वजह से मन का मिजाज बदलना सामान्य बात है तो ऐसे में चिंतामुक्त और खुश रहना बहुत जरूरी है और यह आपके और पेट में पल रहे शिशु, दोनों के लिये बहुत जरूरी है। इसके साथ, हल्के व्यायाम आपको प्रसव के लिये तैयार करने में मददगार होते हैं, तो अपनी सांस लेने-छोड़ने पर ध्यान लगायें।
3. संगीतः संगीत हमारी आत्मा का भोजन है तो आपको जब समय मिले तब इसका आनंद लें। मैंने गर्भवस्था के समय मोजार्ट, हिन्दी फिल्म संगीत, लोक संगीत और ध्यान लगाने के लिये बहुत सा संगीत सुना। इससे मेरा मन हमेशा तरोताजा और खुशनुमा बना रहा। माँ जो संगीत सुनती है, गर्भ का शिशु भी इस संगीत को सुनकर आनंद लेता है। गर्भावस्था के समय बैचेन महसूस करने पर आप गायत्री मंत्र भी सुन सकती है।
4. पढ़नाः पहली बार गर्भवती होने पर मेरे मन में बहुत से सवाल और आशंकायें थीं। मैंने बहुत से ब्लाॅग, लेख और दूसरी माताओं के तर्जुबों के बारे में पढ़ा जिससे मुझे गर्भावस्था के लक्षणों को अच्छे से समझने में मदद मिली। इस बारे में इंटरनेट पर बहुत सी जानकारी है, पर यह पक्का कर लें कि जो जानकारी आप इकठ्ठा कर रही हैं वह भरोसेमंद जरियों से हो। यह आपकी आशंकाओं को दूर करती है और किसी भी बदलाव को वैज्ञानिक तरीकों से समझाती है। हालांकि, अपनी जानकारी बढ़ाने के लिये इन्हीं चीजों तक सीमित न रहें और कुछ हल्की-फुल्की किताबें भी पढ़ें जिससे अपने मन को खुशनुमा रखने में मदद मिले।
5. गलतफहमियां न पालेंः जैसे ही आप गर्भवती होती हैं, आस-पास के सभी प्रिय लोगों से आपके ऊपर सलाहों की बौछार होती है। यहाँ तक की आपको बूढ़ी दादी की बहुत सी कहानियां/मनगढं़त बातें भी सुनाई जाती हैं। इसमें सबसे आम होता है गर्भ में शिशु का लड़का या लड़की होने का पता करना जिसके लिये आपके पेट का आकार, त्वचा की चमक, खाने-पीने की इच्छा और सुबह की सुस्ती जैसी बातें इसे जानने का आधार होती हैं। मेरे मामले में, मेरे आस-पास के लोगों का कहना था कि मैं एक बेटे की माँ बनुंगी। यहाँ तक कि मेरे गर्भधारण की फोटोग्राफी के समय फोटोग्राफर ने भी एक लड़के की पोशाक के साथ मुझे खड़ा किया पर हम एक प्यारी सी बेटी माता-पिता बने। ऐसा होना केवल संयोग होता है और इन मनगढं़त बातों में कोई सच्चाई नहीं होती। सामान्य प्रसव न होना और सर्जरी से शिशु का पैदा होना भी एक सामान्य बात है। सर्जरी से शिशु का पैदा होना आपके माँ होने में कमी नहीं करता इसलिये सर्जरी से जुड़ी मनगढ़ंत बातों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। मेरी भी सर्जरी हुई और मैंने एक सेहतमंद शिशु का जन्म दिया। अपने दिल की आवाज सुनंे और अपनी देखभाल करें। छोटी सी बात ये है कि इन बातों को सुनें और इनका मजा लें लेकिन इनकी वजह से न तो अपना दिल छोटा न ही अपना ध्यान भटकने दें।
6. सुबह की सुस्तीः सुबह की सुस्ती गर्भावस्था का एक आम लक्षण है और इसे सुबह की सुस्ती का नाम देना बिल्कुल गलत है क्योंकि यह आपको दिन में कभी भी हो सकती है। कुछ भाग्यशाली गर्भवती माताओं में यह लक्षण नहीं दिखता। मुझमें भी सुबह की सुस्ती के लक्षण थे और यह पूरी पहली तिमाही में अक्सर होता रहा। कुछ महिलाओं में यह दूसरी तिमाही तक चलता रहता है और यह हर महिला में अलग-अलग होता है। मैं हर सुबह दांत ब्रश करने से पहले एक बिस्किट खाती थी और इसके आधे घंटे बाद दांत ब्रश करके नाश्ता करती थी और ऐसा करना मेरे बहुत काम आया। इससे हर सुबह मेरे जी मिचलाने को कम करने में मदद मिली। इसे कम करने में मेरे लिये सादा बिस्किट बहुत काम आया पर कुछ लोग मानते हैं कि नहाने के साबुन की गंध लेकर भी इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।
7. गर्भावस्था में पढ़नें वाली पुस्तकेंः जो महसूस हो इसे लिख लें, आपका कोई डर या और कुछ और इन इन नौ महीनों में जो आप चाहें सभी कुछ दर्ज करते जायें। मैं ऐसा करके, मिजाज में होने वाले बदलावों, विचारों और खुशी के पलों का एक संग्रह बना पाने में सफल हो गयी जिससे मैं इन नौ महीने के सफर को बार-बार महसूस कर सकूं। इस तरह की किताबें मन बदलने के लिये बहुत अच्छी होती हैं। यह समय के साथ आपमें होने वाले बदलावों, तस्वीरों और कहानियों वगैरह का एक ऐसा संग्रह होता है जिसे पढ़ना आपके जीवनसाथी को भी खुश रखता है।
गर्भावस्था किसी महिला के लिये एक खुशनुमा सफर की तरह है। आपके लिये जरूरी है कि आप अपने शरीर और उन बदलावों के बारे में जाने जिनसे आप गुजर रही हैं। डाक्टर और इलाज करने वाले आपको बतायेंगे कि आपकी गर्भावस्था में आपके लिये कौन सी बेहतर है। किसी और की सलाह न मानें। जो चीज मेरे काम आई, हो सकता है और महिलओं के साथ न हो। कृपया अपने इलाज करने वाले डाक्टर से सलाह लें और लोगों की कही-सुनी बातों पर बिल्कुल भरोसा न करें।
सेहतमंद रहें, अच्छा खाना खायें, खुश रहें; अपने पेट में पलने वाले शिशु से जुड़ें, तनावपूर्ण माहौल से दूर रहें आदि वो खास बातें हैं जिन्हें माँ बनने जा रही महिलाओं को अपनाना चाहिये। आपको इस दुनिया में एक जीवन लाने के लिये चुना गया है और इससे ज्यादा खुशी का अहसास और कोई नहीं हो सकता। अपने शरीर की आवाज सुनें। यह आपको राह दिखायेगी आपके जीवन के सबसे यादगार नौ महीनों को आराम से गुजारने में मदद करेगी, अपने इस सफर को सबसे अच्छा सफर बनायें।
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