नाकामयाबी का डर खत्म करने ...
उम्र बढ़ने के साथ हर बच्चा कई प्रकार के डरावने पहलुओं का सामना करता है ... कुछ अंधेरे में जाने से डरते हैं, कुछ गुसलखाने में अकेले जाने से डरते हैं और कुछ को कुदरती आफतों का डर सताता है, वगैरह। ज्यादा टेलिविजन और फिल्में देखना और इंटरनेट के ज्यादा इस्तेमाल करने पर इन चीजों से निकलने वाली कठोर ऊर्जा बच्चों को ऐसी वास्तविकताओं से रूबरू कराती है जिसे वह इतनी कच्ची उम्र में संभाल पाने के लायक नहीं होते। इसे अपने घर की बैठक में होने वाली बातचीत के साथ जोड़ कर देखिये - खूनखराबा, बलात्कार, लूटपाट और अपहरण की घटनायें घर में होने वाली आम बातचीत का हिस्सा बन चुकी हैं जो बच्चे के कोमल दिलोदिमाग पर असर डाल कर उसमें डर पैदा कर देती हैं।
इसके अलावा, बढ़ते हुये ज्यादातर बच्चों में परीक्षा में नाकाम होने का डर होना भी एक वास्तविकता है। बच्चे पर परीक्षा में अच्छा करने का जोर डालना जिससे उसे पसंद के काॅलेज में दाखिला मिल सके, परीक्षा चलने वाले पूरे समय को बच्चे के लिये लगभग दर्दनाक बना देता है।
मैं आपको कुछ तरीकों के बारे में बताउंगी जिससे बच्चे के मन से परीक्षा में नाकामी के डर को खत्म करने और परीक्षा के तनाव को कम करने में मदद मिलेगी।
1. बच्चे को सुरक्षा का एहसास करायेंः माता-पिता होने के नाते हमारे लिये जरूरी है कि हम बच्चे में अंदरूनी सुरक्षा के एहसास को मजबूती दें। हमें उनके अन्दर यह भरोसा पैदा करना जरूरी है कि सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है और आने वाले समय में भी सब अच्छा ही होगा। बच्चों को सुकून देने और हौसला बढ़ाने वाली बातों के अलावा, प्रार्थना करना, मंत्र बोलना और अपने-आप से जुड़ने के लिये कुछ मिनट तक ध्यान लगाना, बच्चे में सुरक्षा के एहसास को पैदा करने में मददगार होता है।
2. तनाव को कम करने के लिये गहरी सांस लेंः हमारे शरीर में एक अंदरूनी राडार होता है और जब हम अच्छे विचारों के साथ गहरी सांस लेते हुये अपने-आप से जुड़ते हैं तो यह तनाव को बाहर निकालने में मदद करता है। यह एक जांची-परखी और दर्ज वास्तविकता है कि गहरी सांस लेना, अपने-आप में हमारे शरीर और मन को आराम देने में एक बडा किरदार अदा करता है। 10-20 मिनट तक गहरी सांस लेना आपके बच्चे के तन-मन को तरोताजा कर देगा और मानसिक तनाव से निपटने में उसकी मदद करेगा।
3. कुछ देर तक मंत्रो का जाप करेंः ‘ऊँ’ शब्द के बोलने से जो पवित्र कंपन होता है उसमें शांति, प्रेम और आपसी संबंधों की मजबूती बढ़ाने की खूबी होती है। इसके बोलने से होने वाला कंपन, घर में बच्चों के साथ-साथ परिवार के दूसरे सदस्यों में भी सुरक्षा के एहसास को बढ़ाता है। अपने बच्चे के साथ रोज ‘ऊँ’ शब्द का जाप करें और बच्चे को इससे होने वाले फायदेमंद असर को महसूस करने दें।
4. बच्चे तक पंहुचने वाली जानकारियों की जांच करेंः हमारे बच्चे के आस-पास मौजूद तरह-तरह के जरियों से उसे कैसी जानकारियां मिल रही हैं, इस पर नजर रखना उनकी मदद करने के लिये पहला कदम होता है पर यही काफी नहीं होता। माता-पिता होने के नाते, बच्चे की उम्र की हिसाब से हमें उसकी समझबूझ की जानकारी होना बहुत जरूरी है इसलिये किसी नाजुक मसले पर उससे या उसके आस-पास बात-चीत करते समय हमें बड़ा चैकन्ना रहना चाहिये।
5. अपने बच्चे के साथी बनेंः अपने बच्चे को बार-बार यह एहसास करायें कि चाहे कुछ भी हो, उसके माता-पिता होने के नाते आप हमेशा उसके साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़े होंगे। उसे भरोसा दिलायें कि नतीजों की परवाह करने के बजाय उसे ईमानदारी से कोशिश करने की जरूरत है पर फिर भी, यदि आपको बच्चे में तनाव, नाकाम होने का डर, थकावट जैसे लक्षण दिखें तों कुछ समय के लिये उसे पढ़ाई-लिखाई से दूर कर दें। उसके साथ पार्क में टहलें, जीवन की कुछ मजेदार यादों को उसके साथ साझा करें या उसके मन को बदलने के लिये कुछ हल्की-फुल्की मजाकिया हरकतें करें।
मता-पिता के साथ में ध्यान लगाने और मंत्र जाप करने जैसा संस्कार उन बच्चों के लिये जीवनभर साथ रहने वाला उपहार हो सकता है जो जल्दी से जल्दी अपने मन से बुरे विचारों और तनाव को खत्म की खूबी को पैदा कर एक सेहतमंद जीवन जीना चाहते हैं।
श्वेता चोपड़ा एक ‘लाइफ कोच’ हैं और लोगों को अच्छे ढंग से जीवन जीने का अभ्यास कराती हैं। वह अध्यात्म की मदद से लोगों का इलाज भी करती हैं। पिछले कई सालों से वह बाल एंव किशोरावस्था, माता-पिता होने की परेशानियों और गर्भावस्था में डर जैसे मामले देख रही हैं। वह लोगों को खुद से जुड़ने के लिये प्रेरित करती हैं और उनका फेसबुक पेज facebook/Communicative-Souls काफी लोकप्रिय है।
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