10 उपाय किशोर होते बच्चों ...
बाल अवस्था से किशोर होने का समय ही वह समय होता है जब बच्चे अपनी समझ-बूझ से जज्बातों को जाहिर करना सीखते हैं। यह जीवन की एक खूबी है और इसके प्रति आपका रवैया ही आपके बच्चे के चरित्र और स्वभाव को तय करता है। अगर इसके जवाब में आपका रवैया भी उतना ही या उससे ज्यादा सख़्त होगा तो बच्चा स्वभाव से अंर्तमुखी (दब्बू) हो जायेगा और अगर आप इसकी बिल्कुल अनदेखी कर देंगी तो हो सकता है कि आपका बच्चा यह सीख ही न पाये कि ठंडे दिमाग से जीवन में आने वाले कठिन हालातों का सामना कैसे करना है।
अगर आप जान लें कि आपके बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है तो इस स्थिति से निपटने के लिए शायद आप ठीक जगह पर होंगे। किशोरावस्था की शुरूआत अपने साथ बहुत से शारीरिक बदलावों के साथ-साथ हार्मोनल बदलाव भी लाती है जो मिजाज में उतार-चढ़ाव और बिल्कुल अनचाहे बर्ताव के रूप में सामने आता है - बच्चा अपनी सोच और जज्बात के काबू में नहीं रहता।
एक-दूसरे को भद्दे मैसेज भेजना, सिगरेट पीना, अश्लील वेबसाइट देखना, गाली-गलौज, पलटकर जवाब देना, नियमों को तोड़ना, नशा करना और माता-पिता को धमकाना - बच्चे के 10 साल का होते-होते ये सब कुछ शुरू हो जाता है! जाहिर है कि ऐसे में आप खीज़ जाते हैं और खुद को बड़ा असहाय, निराश और मजबूर महसूस करते हैं - इसे समझा भी जा सकता है - कैसे आपका सीधा-सादा राजदुलारा सा बच्चा बदल कर एक जिद्दी और ढ़ीठ बच्चा बन गया है - ऐसे में आप क्या करेंगी? कैसे जानेंगी कि आपको क्या करना है और क्यों?
हाँ, मैं जानती हूँ, कि इस तरह के नाज़ुक समय में फैसला करना कितना कठिन होता हैः हीरेन एक मंहगा खिलौना लेने के लिए जिद करते-करते माॅल के फर्श पर लेट जाता है; सानिया सब्जियां नहीं खाती और हमेशा जंकफूड खाने के लिए जिद करती है; अयान रोज स्कूल के किसी बड़े लड़के से पिट कर घर लौटता है और खुद को कमरे में बंद कर लेता है; कुछ साल पहले तक क्लास में हमेशा में टाॅप करने वाली शिरीन अब पढ़ाई में कमजोर होती जा रही है, मानव को अगर उसके दोस्त के घर पर रात तक रूकने के लिए मना किया जाए तो वह गुस्से से सिर पटकने लगता है .... हे भगवान! जो माता-पिता ये सब झेल रहे होते हैं, उनकी हालत को समझने के लिए बस इतना पढ़ लेना ही काफी है। ऐसे में माता-पिता होने के नाते आप अपने किशोर बच्चे के साथ तालमेल बिठाने के लिए क्या करेंगे? तो ये रहीं वो 10 बातें जो ऐसे हालात में तालमेल बिठाने के लिये आपकी और बच्चे, दोनों की मदद करेंगी -
पहला और सबसे जरूरी कदम है घर में एक-दूसरे के साथ कैसे पेश आना है, इसके नियम बनाना। आप इसे अपने परिवार या घर के संस्कार कह सकती हैं। आपका परिवार भी समाज का एक छोटा सा हिस्सा है और इसके अपने संस्कार हैं - संस्कार ही वह चीज है जो लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखती है और इसी से हमारे सही बर्ताव के तौर-तरीके तय होते हैं। यह कुछ भी हो सकते हैं जैसे ईमानदारी, बड़ों का आदर, जिम्मेदार होना, नशा करने की सख्त मनाही, गल्तियां न छुपाना, झूठ न बोलना और अपनी बात कहने की आजादी। घर में कैसे पेश आना है, इन सभी बातों को लिख कर अपने बच्चे के कमरे में चिपका दें। इससे वह इन बातों को जल्दी याद कर पायेगा और यह बच्चे के 7 या 8 साल का होने पर किया जाए जिससे यह संस्कारी बातें उसके किशोर/युवा होने तक उसके मन में अच्छे से बैठ जाएं।
घर में ‘आजादी’ का माहौल पैदा करें, बच्चा जितना ज्यादा अपने-आप को दबा-कुचला महसूस करेगा, उसका बर्ताव उतना ही उग्र होगा। अपने किशोर/युवा को अपने अरमानों को पूरा करने के लिये जरूरी छूट दें। उनके किसी बड़े/जवान की तरह बात करने को अपने लिये चुनौतीपूर्ण न मानें - याद रखें कि आपका बच्चा बड़ा हो रहा है .... इस बात को दिमाग में बिठा लें और उसे अपने जज़्बात जाहिर करने दें पर उसे यह अहसास भी करायें कि वह मर्यादा की हदें न लांघे।
बच्चे के लिए खुद मिसाल बनें। बच्चे से वह सबकुछ सीखने या न सीखने की उम्मीद करना, जो आप चाहते हो तो पहले यह सब आपको खुद करना होगा। एक पुरानी कहावत है, ‘बच्चे हमारे नक्शे-कदम पर चलते हैं’ और यह हमारे बड़े और जवान हो रहे बच्चों पर भी लागू होती है।
सजा और ईनाम की तरकीब बड़ी कारगर है। ऐसा माहौल तैयार करें कि जिसमें अच्छे बर्ताव के लिए ईनाम तो बुरे बर्ताव के लिए सजा, दोनों ही के लिए गुंजाइश हो। अगर आप ऐसा करेंगी तो बच्चे को निष्चित ही इसका फायदा मिलेगा। सजा देने का मतलब शारीरिक तकलीफ देना नहीं है बल्कि यह उनको मिलने वाली छूट में कटौती करके भी दी जा सकती है, जैसे टीवी देखने के समय को घटा कर या उन्हें घर के कामों में लगाकर।
जब आप अनुशासन को लेकर एक संतुलित नज़रिया कायम कर लेते हैं, तो आपके किशोर को पता चल जाता है कि वहाँ कुछ नियम हैं जिनका उसे पालन करना है पर जरूरत के मुताबिक कब इन नियमों में बदलाव करना है और ढ़ील देनी है, यह आपको तय करना होता है। तो संतुलित नज़रिये का यह मतलब नहीं कि आप, अपने ही बनाए हुए नियमों को तोड़ने लगें या अपने किशोर की मांग पर इनसे समझौता कर लें।
हो सकता है कि इसकी शुरूआत करने में मुश्किल हो - पर ऐसा तब तक तो बिल्कुल नहीं हो सकता जब तक आप ऐसा करने के लिए सच्चे मन से कोशिश न करें। बच्चा हमेशा इस तरह की उबाऊ और नीरस चीजों से बचता है पर उन्हें ‘जिम्मेदारी’ की सीख देने का बस यही तरीका है। कमरे की सफाई, बिस्तर को ठीक करना, पढ़ने-लिखने वाली टेबल का रखरखाव, बैठक कमरे की साफ-सफाई या खाने की टेबल को सजाना..... कहीं न कहीं से शुरूआत तो करना ही पडे़गी।
इन सालों के दौरान आपके बच्चे के आस-पास जो लोग होते है, बच्चे के दिमाग पर उनका सबसे ज्यादा असर होता है। हांलाकि आप बच्चे को उसकी इच्छा के मुताबिक दोस्त/यार बनाने से नहीं रोक सकते पर इस पर नज़र तो रख ही सकते हैं। अगर आपका बच्चा किसी खास दोस्त के साथ बंद कमरे में घण्टो तक समय गुज़ारता है तो जान लीजिए कि यह ख़तरे की घण्टी है - इसकी अनदेखी न करें। इस बंद दरवाजे के खेल को तुरंत रोकें और इससे पहले कि ़बच्चा गलत रास्ते पर चल निकले, इससे सख्ती और दृढ़ता से निपटें। अपने विवेक का इस्तेमाल करें और सुधार के लिए कदम उठाएं। सबूतों के इंतजार में न रहें, कहीं ऐसा न हो कि बहुत देर हो जाए।
किसी भी समस्या से निपटने की सही जगह है आपका घर। आपको, अपनी सब्र और बर्दाश्त करने की ताकत को बढ़ाना होगा। इसके साथ-साथ, जब बाहर जा रहे हों तो - बच्चे को जरूर बतायें कि बाहर उसे किस तरह से पेश आना है, जिससे बच्चा पहले से आगाह हो जाए। चाहे जो हो, दूसरों के सामने, खासकर उसके दोस्तों के सामने उसकी बात-बात में गल्तियां न निकालें और न ही उसे डाटें और न ही बच्चे को कभी भी सबके सामने बेइज्ज़त न करें।
आपका बच्चा जवान हो रहा है और चीजों को पसंद और नापसंद करने का उसका अपना नज़रिया है, इस सच्चाई को अच्छे से मन में बिठा लें और इसका सम्मान करें। अपनी इच्छाओं और पसंद को उस पर थोपने की कोशिश न करें। किसी बात को लेकर बच्चे पर दवाब न डालें, जब तक आपके पास इसके लिये कोई वाज़िब वजह न हो क्योंकि बच्चे में सवाल-जवाब करने की समझ आ चुकी है ... इललिए इत्मिनान से उसके सवालों का जवाब दें और उसके मन में उठने वाली जिज्ञासाओं को समझने के लिए समय दें ..... और अब सबसे आखिरी और जरूरी बात ....
यह सच है कि किशोर/युवा हो रहे बच्चे इन सालों के दौरान माता-पिता को अपने से जुड़ी हर बात साझा करने को ज्यादा अहमियत नहीं देते और न ही ऐसा करने में दिलचस्पी रखते हैं पर इसके बावजूद आपको उनके इस बर्ताव का सम्मान करना चाहिए। ज्यादा परेशान न हों और न ही इस बारे में जानकारी लेने की कोशिश करें - ऐसा करना आपके और बच्चे के बीच की दूरियों को और बढ़ाएगा। उसके साथ फिल्म देखना, बाहर खाने के लिए जाना और खुले में उसके साथ कोई मजेदार खेल खेलना वगैरह ही वो बातें हैं जो आप कर सकती हैंैै तो तनाव न लें और अपने बच्चे के साथ कुछ मजेदार पल गुजारें।
यह भी जान लेंः उग्र हो जाना उसकी आदत या लक्षणों को नहीं दिखाता बल्कि यह उसके बढ़ रहे होने को जाहिर करता है। इसमें यार-दोस्तों का दवाब और दूसरी बाहरी वजहें (जैसे शारीरिक रंग-रूप का मामला) जो आपके किशोर/युवा के बर्ताव और हाव-भाव पर असर करते हैं, को और जोड़ दें, आपको खुद ही जवाब मिल जायेगा।
एक और जरूरी बातः किशोर/युवा होने के दौर को बच्चे के विकास और बढ़ती के रूप में स्वीकार करें। यह समय भी जीवन के दूसरे समय के जैसे ही गुज़र जाएगा, इसलिये सब्र से काम लें और निश्ंिचत रहें .... और हाँ, इस बारे में बात करना और अपने साथी दूसरे माता-पिता के साथ इन बातों को साझा करना मददगार होता है और एक-दूसरे की मदद से इससे पार पाया जा सकता है, तो इससे फायदा हो या नुकसान, इस बारे में बताएं जरूर और अपने माता-पिता होने का आनंद उठाएं।
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